मै कुछ महीनों से चिट्ठे लिख-पढ रही हूँ.आमतौर पर ये होता है कि मै कुछ लिखती हूँ फिर कुछ लोग टिप्पणी के रूप मे अपनी प्रतिक्रिया लिख देते है, लेकिन कल मैने देखा कि ‘अबाउट’ वाले पेज पर पहले ही से दो टिप्पणियाँ हैं जो मेरे लेख का इन्तजार कर रही हैं. अगर वे टिप्पणियाँ किसी ‘अनाम’ ने लिखी होती तो उसके लिये मेरा जवाब होता-‘भैया,आप खुद तो अपने नाम तक के बारे मे कन्फ्यूज्ड हो मेरे बारे मे जान कर क्या कर लोगे?”
लेकिन टिप्पणियाँ थी समीर जी की और श्रीश जी (परिचर्चा के नये मास्टर जी!) की, सो मैने सोचा कुछ लिख देती हूं.बहुत खोजा मैंने लेकिन अपने बारे मे लिखने को ‘मनभावन’ कुछ मिला ही नही!
मेरा नाम आप सब जानते ही हैं और हम दुनिया में कहीं भी रह्ते हों ‘यहाँ’ या ‘वहाँ’ या फिर ‘झुमरी तलैया’ में (बशर्ते वहाँ अन्तरजाल की सुविधा हो!), इससे क्या फर्क पडता है! हम हमारे चिट्ठों पर ही मिलते रहते हैं और उस लिहाज से सब एक दूसरे से सिर्फ दो ‘क्लिक'(अगर ‘फेवरिट’ मे ‘एड’ हों तो!!) या फिर तीन या चार ‘क्लिक’ दूर हैं.
मै चिट्ठों की दुनिया मे इत्तफाक से आई, ये शब्दों और विचारों की दुनिया मुझे अच्छी लगी सो मै यहाँ हूँ.वैसे पढ़ने को अच्छी किताबें, पत्रिकाएँ, और अखबार भी हैं लेकिन यहाँ एक संवाद या वार्तालाप है जो मुझे पसंद है. हमारी भारतीय संस्कृति की कई विशेषताओं में से एक यह भी है कि हम लोग बहुत कुछ ‘कहना-सुनना’ पसंद करते हैं. जनता की सरकार से, वृद्धों की बच्चों से, बीबियों की पतियों से कई बार शिकायते इतनी सी ही होती है कि वो उनकी सुनते नही हैं. हम इमानदारी से अपनी समस्या का समाधान चाहते भी कहाँ हैं, कोई हमारी बात सुन ले हम इसी से संतोष पा लेते हैं.
मै चिट्ठों को हर गाँव, कस्बे या शहर में गली के किसी नुक्कड़ पर हर दिन होने वाली चर्चाओं का ही परिष्कृत रूप मानती हूँ जहाँ खेल, राजनीति या सामाजिक विषयों पर चर्चाएँ होती हैं.फर्क सिर्फ यह है कि चिट्ठा जगत के लोग कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे और विचारक किस्म के होते हैं (मै उनमें से एक नही हूँ!!).यहाँ हम शब्दों और विचारों से एक दूसरे को जानते है और पसंद या नापसंद करते हैं. कई बार हमारे शब्दों से हम वो बताते हैं जैसे कि हम हैं, लेकिन कई बार हमारे शब्दों से हम वो कहते हैं जैसा कि हम होना चाहते हैं.
आपकी जानकारी के लिये कोशिश करके यहाँ कुछ लिख दिया है.पहचानना चाहते हैं तो कुछ दूर इस चिट्ठे के साथ चलियेगा.वैसे कुछ लोग यहाँ हैं जो मुझे पहचानते भी हैं, उनसे गुजारिश है कि अगर वे मेरे या इस चिट्ठे के बारे मे कुछ कहना चाहें तो जरूर कहें.सिर्फ दो बातों का ध्यान रखें-
१. मै किसी भी मजाक का बुरा मान सकती हूँ!!
२. मैं किसी भी बात को मजाक मान सकती हूँ!!!