कुछ दिनों पहले जब मै हिन्दी चिट्ठा-जगत से परिचित हुई और अपना लिखना शुरु किया तब मुझे हिन्दी टाइपिंग बिल्कुल भी नही आती थी और लगता था जैसे-तैसे कुछ लिख भी लिया तो पढे़गा कौन? जबकि यहाँ सब लोग इतना अच्छा लिख रहे हैं!!…लेकिन फिर टाइपिंग की गति भी तेज़ होती गई और न ही कभी लिखने के विषयों की समस्या आई और न ही पाठकों की! तो ये पढने लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है! किताबों और पत्रिकाओं से अलग ये दुनिया बहुत आकर्षक है और जानकारी से भरपूर भी!..लेकिन अब अन्य जिम्मेदारियों और रूचियों और चिट्ठों का तालमेल मुश्किल होता जा रहा है….देखिये कितनी दुविधा है…
(** यदि आप हिन्दी चिट्ठा-जगत के बारे मे ज्यादा नही जानते तो ये पोस्ट पढकर समय न गवाएँ, हाँ! अगली पोस्ट पढने फिर से यहाँ जरूर आएँ!!**)
//किसको छोडूँ, क्या पढ डालूँ!
यहीं रहूँ या विदा कह दूँ!! //
‘रत्ना की रसोई’ से व्यन्जनों की खूशबू आती है,
तो ‘मुन्ने की माँ’ ‘छुट-पुट’ बातें बताती हैं!
किसी की ‘चौपाल‘ पर बैठ ‘पानी के बताशे’ खाएँ,
या किसी के साथ गीतों की ‘एक शाम’ बिताएँ!
कोई ‘आईना’ दिखाता है तो कोई ‘मेरा पन्ना’,
कोई ‘दस्तक‘ देता है तो किसी को है ‘कुछ कहना’!
‘जो कह नही सकते’ वे हैं ‘छायाकार’,
और ‘देसी-टून्ज़’ बनाने वाले ‘रचनाकार‘!
‘फुरसतिया‘ जी के फुरसत से लिखे लेख पढें,
या ‘कविराज‘ पर टिप्पणी के रुप मे अपने ‘हायकू‘ गढें!
अफलातून सुनाते हैं ‘शैशव’ की बातें,
तो शुएब की होती हैं ‘खुदा‘ से मुलाकातें!
‘किसी की नजर से दुनिया’ देखें,
या फिर ‘सृजन शिल्पी’ जी का शब्द-सृजन परखें!
देखना है, ‘की बोर्ड के सिपाही’ किस मोर्चे पर खडे हैं,
या ‘जोगलिखी‘ के ‘मन्तव्य‘ किस बात पर अडे़ हैं!
‘ई-पंडित’ के पास जाकर उनसे ले ज्ञान,
या फिर ‘उन्मुक्त‘ के ‘लेख‘ से सीखें विज्ञान!
देखना है ‘उड़न तश्तरी’ किस मुद्दे पर मँडरा रही है,
या फिर ‘गीत-कलश’ से किस गीत की आवाज आ रही है!
आशीष करते ‘चिन्तन‘ तो ‘प्रियंकर‘ कविता हैं पढ़वाते,
तो ‘खालीपीली‘ ‘अन्तरिक्ष’ की बातें बताते!
तेजी से भागता ‘तरकश’ पढें या कि रुका हुआ ‘निरन्तर“!!
या सुने ‘प्रत्यक्षा‘ की बातें, जो कहतीं रह्-रह कर!!
शुक्र है ‘रोजनामचा‘ और ‘हिन्दिनी‘की रफ्तार धीमी है,
और अब तो कभी-कभी ही होती ‘नुक्ताचीनी‘ है!!!!
पुनश्च: —
अविनाश की टिप्पणी ( उन्हे क्यूँ छोड दिया?)पर —
अविनाश के “मुहल्ले” की भी “जुगाड” कर लेते हैं,
आओ! “सुख सागर” की कथाएँ भी पढ लेते हैं!
देखें दिव्याभ का ‘डिवाइन इन्डिय़ा”,
और फिर बेजी की “कठपुतलियाँ”!
सुने प्रेमलता जी की ‘मन की बात’,
या करें ‘रजनीगन्धा’ से मुलाकात!
क्या कहा? इन सब के चिट्ठों की लिन्क चाहिये?
जनाब मुझ पर जरा-सा तो रहम खाईये!
“नारद” या “चिट्ठा-चर्चा” के चक्कर लगाइये,
वहीं से सारी लिन्क पाईये!!
अब भी जो रह गये हैं, वे सब भी मुझे पसन्द हैं,
लेकिन भाईयों अब मेरे लेखन के उत्साह की गति मन्द है!
अब आप ही मेरी मदद को आगे आओ!
अपने लिये एक दोहा आप भी तो बनाओ!!
….ओहह! अभी भी कई लोग रह गये हैं..लेकिन अब ये आवाजें सुननीं होंगी…..
बेटी कह रही है- माँ, मुरब्बे के लिये आँवले कब लाओगी!
पिताजी पूछ रहे हैं-नीबू का अचार कब बनाओगी?!!
तो अब चिट्ठों की दुनिया से दूर जाना होगा!
पहले मुरब्बा और अचार बनाना होगा!!!!