पिछले दिनों अमित को उनके मित्र ने ‘टेग’ करके उनके कुछ राज बताने के लिये कहा, उन्हें अपने स्कूल की बातें याद आ गई और फिर टेग के नियम के अनुसार उन्होंने कुछ और चिट्ठाकारों को ये काम करने के लिये कहा.हमें भी कहा गया. अब राज तो कुछ हैं नहीं, यूँ ही अपने अन्दर झाँक कर देखा तो कुछ बातें मिल गईं–
१. सबसे पहले तो बात उसी की कर लें, जिसके द्वारा आप मुझे जानते हैं यानि मेरे लेखन की. दरअसल पिछले कुछ सालों मे मेरा लिखना मेरे लिये भी एक खोज ही है! जिन्दगी में कई बातें अजीब से इत्तफाक से हो जाती हैं वैसे ही मेरा लिखना शुरु हुआ. एक बार मेरी छोटी बेटी को स्कूल के किसी समारोह में दुल्हन बनाया था. तैयारी तो सारी कर ली गई और मेरा ये मानना था कि भारतीय दुल्हन चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छी लगती है, लेकिन मेरी मित्र की जिद थी कि उससे कुछ बुलवाया जाय. उसने कई सारी फिल्मी पन्क्तियाँ सुझाई लेकिन मुझे इतनी छोटी बच्ची से वो सब बुलवाना ठीक नही लगा. थोडा सा सोचा तो ये पन्क्तियाँ बन गईं-
मै नई सदी की दुल्हन
नहीं रही मैं ऐसी वैसी
नहीं परीक्षा सीता जैसी
अब ना मुझको कोई बन्धन
मै नई–कम्प्यूटर है मुझको आता
फास्टफूड है मुझको भाता
उडती हूँ मैं पवन पवन
मै नई–
और फिर मैं लिखती ही चली गई..कई कविताएँ लिख लीं.ज्यादातर बिना किसी मेहनत के एक ही बार में लिखी है और लिखने के बाद बहुत ही कम बार ऐसा होता है कि मैं उसमे कुछ फेर बदल करती हूँ..
लेकिन मेरे भाई बहन, जिनके साथ मैं पली बढी और जिस तरह की बचपन से मेरी रुचियाँ रहीं, वो मानने को तैयार ही नही थे कि मै लिख भी सकती हूँ!! बहुत परीक्षाएँ लीं उन्होंने मेरी और तभी जा कर वे माने की ये सब मैंने ही लिखा है और मुझे अपने घर में किसी की कोई पुरानी डायरी नही मिली है!!
२. लिखने के बाद बात पढने की आती है..पढती तो मैं बहुत हूँ लेकिन कहानी या उपन्यास पढने में ज्यादा रुचि नहीं रही…. बहुत ही कम पुस्तकें पढी हैं वे भी ज्यादातर आत्मकथाएँ..बडा सा उपन्यास पढने का बिल्कुल भी धर्य नहीं है.. लेकिन लिखती हूँ तो कई बार यह स्वाभाविक प्रश्न मुझसे पूछा जाता है कि मेरे पसँदीदा साहित्यकार कौन हैं और मेरे लिये ये दुनिया का सबसे कठिन प्रश्न साबित होता है!!
३. जब मै चिट्ठाजगत से परिचित हुई तब मुझसे कहा गया था कि आमतौर पर यहाँ भी ग्रुप्स होते हैं..लेकिन मेरी प्रतिक्रिया थी कि आम जिन्दगी में तो हम तमाम भागों में जाति, स्टेटस, सम्पन्नता आदि के आधार पर बँटे हुए हैं ही कम से कम इस जगह तो ऐसा कुछ न हो! मुझे कभी भी किसी ग्रुप मे शामिल होना पसन्द नही रहा या कहें कि मै हर ग्रुप मे शामिल होना चाहती हूँ…..मेरी बहुत अच्छी मित्रों मे एक की उम्र ७५ वर्ष है और एक की १७ वर्ष!
मै किसी तरह कि ‘ब्लाईंड फेथ’ पर यकीन नही करती, बल्कि मैं आँखें खुली रख कर आस्था रखने पर विश्वास करती हूँ…किसी तरह के निर्णयों पर पहुँच कर अडियल हो जाने के बजाए मै विचारशील रहना पसँद करती हूँ.. क्यों कि कोई भी निर्णय अपने आप में सही या गलत नही होते बल्कि परिस्थितिनुसार होते हैं…
४. मुझे दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कोई भी ‘के’…’एक्स’, ‘वाय’,’ज़ेड’! धारावाहिक पसँद नही हैं. उसमें भारतीय औरतें करोडों के बिसनेज़ करने वाली कम्पनीयों की सी.ई.ओ. होने के साथ ही अपहरण, हत्या और न जाने किन किन कामों में माहिर होती हैं! और पुरुष! मानों उन्हें तो इन महिलाओं के झमेलों मे उलझने और बाहर आने के सिवा दूसरा कोई काम ही नही आता है!
मुझे ‘क्विज’ वाले प्रोग्राम पसँद है, टेनिस, क्रिकेट देखना पसँद है. और हाँ अपनी मेरी बेटी के साथ “मैड” और “ओसवाल्ड” देखना भी पसँद है!
मुझे ‘सुडोकू’ और ‘शब्द या वर्ग पहेली’ हल करना बहुत पसँद है! रोज कम से कम एक करती हूँ!
पिछ्ले २० सालों मे मैने शायद ३० हिन्दी फिल्म देखी होंगी! ओह इसका मतलब ये नही कि मै अन्ग्रेजी फिल्म देखती हूँ!! वो तो मुझे समझ ही नही आती!!!
५. मै अपनी गलती जल्दी से मान लेती हूँ (अगर मैने की हो तो!!), लेकिन मेरी बेटी ऐसा नही मानती!!
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अब मै इस टैग को थोडा बदल कर आगे बढाना चाहती हूँ. ये मेरे पाँच सवाल हैं–
१. आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?
२. यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?
३.क्या आप यह मानते हैं कि चिट्ठाकारी करने से व्यक्तित्व में किसी तरह का कोई बदलाव आता है?
४.आपकी अपने चिट्ठे की सबसे पसँदीदा पोस्ट और किसी साथी की लिखी हुई पसँदीदा पोस्ट कौन सी है?
५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.
ये प्रश्न इनके लिये हैं–
१.समीर जी. २.अनूप जी. ३.मनीष जी. ४.उन्मुक्त जी. ५.जीतू भाई.
(*मुझे खुशी होगी यदि आप लोग इसके जवाब देंगे*)
** जानती हूँ, आप सभी वरिष्ठ और सम्मानित चिट्ठाकार हैं, शायद आपके अपने चिट्ठों के लिये कोई मानक भी निर्धारित होंगे..यदि आप अपने चिटठे पर न लिखना चाहें तो कोई बात नही*
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