पिछले दिनो तपती गर्मी के बाद दो दिन से शाम मे हुई पानी की बौछारो के साथ ही मेरे शहर का मौसम खुशनुमा हो गया है.मै और मेरी मित्र मौसम के बारे मे बाते कर रहे थे और बात जा पहुंची दूरदर्शन पर..उसने कहा इस दौर मे विभिन्न चैनल जिस तरह् से अनोखे प्रयोगो मे लगे है मसलन न्यूज मे चुटकुले और चुटकुलो मे न्यूज दिखाने लगे है, हो सकता है कोई चैनल पल-पल की मौसम की जानकारी देने लगे! …मुझे उन मौसम के हाल बताने वाले समाचारो मे कभी रुचि नही रही (शायद किसी को नही रहती.हां! लेकिन उसमे दिखाया जाने वाला ’लश ग्रीन’ भारत बहुत अच्छा लगता है!) . और उसका कोइ खास औचित्य भी नजर नही आता सिवाय इसके की नये समाचार वाचको के लिये वो एक लान्च पैड होता है…..
हम हर समय बदलने वाले मौसम के बारे मे जानकर कर क्या लेगे! क्या फ़रक पडता है यदि किसी शहर का तापमान ४० डिग्री न होकर ४२ डिग्री है? सबकुछ उतना ही नियमित होगा जितना कि होना चाहिये.. क्या हम आम भारतीय मौसम की परवाह करते है?
कुछ उदा. देखिये आम भारतीय की जीवन शैली और मौसम के सम्बन्ध के–
१. मेरे गांव मे ज्यादातर शादियां अप्रेल और मई की भीषण गर्मी होती है, जब वहां बिजली और् पानी की समस्या अपने चरम पर होती है..और इसकी एकमात्र वजह यही होती है कि उस पारिवारिक जलसे मे परिवार की हर बेटी और बेटा (जो किसी मेट्रो शहर् मे मल्टीनेशनल कम्पनी के लिये पसीना बहा रहा होता है) शामिल हो सके..फ़िर शादी पर बेटियो और बहुओ को मौसम के बिल्कुल विपरीत भारी से भारी गहने और भारी से भारी साडी पहननी होती है…और अगर उसका नन्हा सा ८-१० महीने का बच्चा है तो बेचारे का मां की साडी और गहनो से घायल होकर रो-रो कर बुरा हाल हो जाता है लेकिन बजाए उसकी मुसीबत समझने के तमाम दादियां और नानियां यही कहेगी कि मां ने बच्चे को किसी के पास जाना सिखाया ही नही..अब उन्हे कौन समझाए कि उसका पिता तब घर से जा चुका होता है जब बच्चा सुबह सोकर उठता नही है और रात तभी लौटता है जब बच्चा वापस सो जाता है..और पडोस के किसी वर्मा अन्कल और शर्मा आन्टी को फ़ुर्सत नही होती बच्चे से मिलने की… .
शादी पर इस मौसम मे भी दूल्हा कोट पैन्ट और् टाइ जरूर पहनता है (अगर वो किसी ’बडी’ नौकरी मे नही होता तो यही उसके जीवन का एकमात्र अवसर होता है ’साहब’ बनने का!)
२. बारिश् के मौसम मे स्कूल खुलते है जब कई नन्हे बच्चे पहली बार अपनी मां से कुछ ज्यादा देर के लिये अलग होना सीखते है…इसी मौसम मे रक्षाबन्धन के मौके पर कई मील दूर रहने वाले भाई और् बहन खराब सडको, उफ़नती नदियो और देर से चलने वाली रेलगाडियो से होने वाली परेशानी के बावजूद आपस मे मिलते जरूर है…
३. हमारे बालीवुड की मौसमी समझ! वहां “वेदर एट विल” होता है! यानि जब लडका और लडकी पहली बार मिले तो हल्की बारिश वाला खुशनुमा मौसम और् हवाओ की दिशा और वेग भी ऎसा कि लडकी का दुपट्टा उडकर सीधे लडके के उपर! फ़िर उनके बिछडने के वक्त बिजली, आंधी, तूफ़ान के साथ घनघोर बारिश!!
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चलते चलते एक बात और– मैने अपनी पिछली पोस्ट मे बिल्कुल ’बेमौसम’ की बात कह दी थी..यानि जब जीतू भाई ’नारद’ का सुनहरा इतिहास लिख रहे थे तब मैने नारद के लिये एक पत्र लिख दिया.. मै बिना जाहिर किये भी रह सकती थी लेकिन जिसे आप चाहते हो उससे मन की बात कहते ही है ना!
आशा है जीतू भाई, पन्कज जी, ई-स्वामी जी और उनके सभी साथी मुझे क्षमा करेगे…..
* अब हम फ़िर मिलेगे एक हफ़्ते बाद क्यो कि मै जा रही हूं सफ़र पर…तब तक आप–
सोचते रहिये, लिखते रहिये!
पढते रहिये, पढवाते रहिये!!
हंसते रहिये, मुस्कुराते रहिये!!!