मेरे सहपाठी….

पिछले दिनो जब अपने गांव गई थी तो इत्तफ़ाक से वहां मेरे एक पुराने सहपाठी से मुलाकात हो गयी..मेरे भतीजे के हाथ मे कुछ चोट आ गई और कहीं कलाई मे माइनर फ़्रेक्चर तो नही, ये जानने के लिये डाक्टर के पास जाना पडा…उसके साथ मै गई…

रास्ते मे मुझे पता चला कि हम एक नये अस्पताल मे जा रहे है‍…पहले वहां निजी अस्पताल कम ही थे..हमारे घर के तमाम सदस्यो‍ का इलाज पिताजी के एक मित्र के जिम्मे था…और घर के अधिकतर बच्चो‍ का जन्म सरकारी अस्पताल मे ही हुआ, क्यो‍ कि दादी का मानना था कि निजी अस्पताल की कई डिग्रीधारी, नई डाक्टर सहिबा से ज्यादा कुशल वो नर्स होती है जो दिन मे कई तरह् के कई सारे केस देखती है…..लेकिन अब सरकारी अस्पताल की हालत खुद खराब हो गई सो इस नये अस्पताल की तरफ़ रुख करना जरूरी हो गया…..

अस्पताल के बोर्ड पर डॊक्टर के नाम देखकर मै चौकी लेकिन मैने अपनी याददाश्त पर यकीन नही किया..हम आगे बढे ..जब डॊक्टर साहब के सामने पहुंचे और जैसे ही उन्होने मुझे देखा, उनके मुख से अपना नाम सुन मै हैरान रह गई!! वो मेरे सहपाठी ‘एन’ थे..लेकिन मै अब भी असमन्जस  मे थी कि क्यों कि हम बी एससी के तीन साल साथ मे थे…मै इतना ही कह पाई कि “ये पढाई कब कर ली??” वो मेरे स्वाभाविक आश्चर्य के जवाब मे मुस्कुराकर बोले-“एम एससी के बाद!”…..
उन्होने मेरे भतीजे के हाथ को देखकर उसे X-ray  के लिये भेज दिया और मेरे लिये पास ही एक दूसरे डॊक्टर का केबिन खोल दिया… और कह कर गये की कुछ पेशेंट देख कर अभी वापस आता हूं…..
…..ये मेरे दूसरे सहपाठी ‘जे’ का केबिन था जो ‘एन’ के cousin थे…टेबल पर कई सारी मोटी-मोटी डॊक्टरी किताबे‍ रखी थी…टेबल पर किताबे‍ और केबिन की अन्य चीजे‍ बहुत व्यवस्थित नही रखी थी..शायद हमारे काम करने की जगह भी हमारे व्यक्तित्व को दर्शाती है‍..और ये मेरे सीधे साधे, शांत सहपाठी का केबिन था…मुझे आश्चर्य हो रहा था उनके एम एससी  के बाद डॊक्टर बन जाने पर और उससे भी ज्यादा आश्चर्य इस बात पर कि वे मुझे पहचान गये! नाम सहित! वो भी तब जबकि उन तीन सालो‍ मे हमने शायद ही कभी बात की हो…. ये दोनो बहुत गम्भीर किस्म के , हमेशा किताबो‍ मे डूबे रहने वाले विद्यार्थी थे, लेकिन कभी भी क्लास के पहले तीन स्थानो‍ मे उनका नाम नही रहा…
मुझे पिछली बाते‍ याद आने लगी..फ़िल्म की तरह फ़्लैश बैक मे! ( अरे!! ब्लैक एण्ड व्हाईट मे नही, इतनी भी पुराने बात नही!:)) …

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…तब हम लोग बी एससी  द्वितीय वर्ष मे थे…बॊटनी के प्रेक्टिकल का दिन था…उसी दिन कोई महत्वपूर्ण क्रिकेट मैच था ( हां जी, कुछ मैच रूटिन प्रेक्टिकल क्लास से ज्यादा महत्वपूर्ण होते है‍!)…क्लास के लडको‍ को उस दिन प्रेक्टिकल नही करना था लेकिन हमारी बॊटनी की मैडम “Mrs S ” से सब बहुत डरते थे..बहुत गुस्से वाली थी‍ वो. उन्हे शायद ही कभी मुस्कुराते हुए देखा गया था..उनकी लव- मेरेज उन दिनो चर्चा का विषय थी, कि ये घटना इस तरह के व्यक्तित्व के साथ कैसे हो सकती है! उन्हे “Mrs D” कहने के बजाये उनके पति को “Mr S ” कहा जाता था….. उनके भय से कोई निर्णय लेना मुश्किल हो रहा था..सारे लडके भी आपस मे एकजुट नही थे अन्यथा उनके निर्णय को हमेशा की तरह ही लडकियो‍ ( जो संख्या मे बहुत कम थी) को मान लेना पडता…सो इस बार जिन्हे घर जाना था उन लडकों ने नया उपाय खोजा..उन्होने  लडकियो‍ से कहा कि आज वे उनका साथ दे दे‍ तो बाकी लडके भी मान जायेंगे……पहली बार सहायता मांगी गई थी तो हम सहर्ष तैयार हो गये… मुझे लैब तक ये संदेश पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई…मैडम जी से कहने का मतलब था ‘आ बैल मुझे मार!’, अत: उनसे कहने का सवाल ही नही था…..मै और मेरी मित्र लैब असिस्टेंट के पास गये और उनसे कहा कि कई सारे लोग जा चुके हैं तो आज हम प्रेक्टिकल नही कर रहे….उन्होने स्लाईड्स, माइक्रोस्कोप आदि सब तैयारियां कर ली थी … वे बोले ठीक है आज तुम दो ही लोग करो!..हम उनकी बात अनसुनी करके आगे बढ गये….उनके धमकी भरे ये शब्द सुनाई दिये- ’ठीक है, मै देख लूंगा तुम्हे’……
…परिक्षा का परिणाम आया मुझे बॊटनी के प्रेक्टिकल मे ५० मे से  पूरे २६!! नंबर मिले, जो प्रेक्टिकल मे फ़ेल होने के बराबर ही है, खासकर तब जबकि  मै एक अच्छी विद्यार्थी थी ( अरे आपसे झूठ क्यूं बोलूंगी! 🙂 ) और Theory  मे मुझे बहुत अच्छे नंबर मिले थे… मुझे नही पता ये क्यो‍ और कैसे हुआ लेकिन फ़िर भी जीत मेरी ही हुई थी क्यो‍ कि अब भी मै कॊलेज मे Biology विभाग मे दूसरा स्थान बना पाई थी…

……मेरी क्लास के सभी सहपाठियो‍ को मेरे लिए बुरा लगा और मुझे सलाह दी गई कि वो सब इस बात को लेकर प्रिन्सीपल से मिलने को तैयार है..लेकिन मैने एसा नही किया क्यो‍ कि आगे एक और पूरा साल उन्ही लैब असिस्टेन्ट और उन्ही मैडम जी के साथ गुजारना था…..

…..मुझे याद नही कि मेरे घर मे भी इस बात को लेकर कोई चर्चा रही हो, क्यों कि मेरे माता- पिता के लिये शिक्षा के मायने परिक्षा मे मिलने वाले नंबरो‍ से कहीं अलग थे…..

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….मेरा भतीजा लौट आया था, उसकी कलाई मे माइनर फ़्रेक्चर था, जिसके बारे मे डॊ. ’एन’ से बात हुई. और् भी दूसरी बातें हुई…उन्होने ये भी बताया कि उन्होने और ’जे’ ने दो बार PMT( Pre medical test)  की परिक्षा दी जिसमे उन्हे सफ़लता नही मिली तो उन्होने एम एससी कर ली..एम एससी फ़ाइनल के बाद जब वे “IAS ” की परिक्षा की तैयारी कर रहे थे तब एक बार उन्होने “PMT ” की परिक्षा दी और इस बार दोनो को सफ़लता मिली…फ़िर “MBBS ” के बाद जे ने ‘ Orthopaedics ‘ मे डिप्लोमा और ’एन’ ने “MD ” किया और यहां कुछ और लोगों के साथ मिलकर अच्छी सुविधाओ‍ वाला अस्पताल बना लिया… .
हमने हमारे और भी कई सहपाठियो‍ के बारे मे चर्चा की…और ये जाना कि ज्यादातर वे ही लोग जीवन मे अच्छा कर रहे थे जो सामान्य विद्यार्थी थे…..लौटते हुए मै यही सोच रही थी कि शायद academics मे अच्छा होना और व्यावहारिक जीवन मे सफ़ल होना दो बिल्कुल ही भिन्न बातें हैं…..
…मुझे बेहद खुशी हुई अपने पुराने सहपाठी से मिलकर और ये जानकर कि जब ज्यादातर लोग विकास के लिये बडे शहरो‍ की तरफ़ पलायन करते है‍ तब मेरे सहपाठी विकास को हमारे छोटे शहर मे लाने का प्रयास कर रहे है‍….

Published in: on मई 4, 2007 at 2:49 अपराह्न  Comments (16)  

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16 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. पुराने सहपाठियों से मिल कर तो बहुत ही प्रसन्नता होती है. अच्छा लगा जानकर कि आपके सहपाठी बड़े शहरों की शहरी चकाचौंध से आकर्षित न होकर अपने क्षेत्र के विकास के लिये कार्य कर रहे हैं. अच्छा लगा इस आलेख को पढ़कर.

  2. कभी-कभी सफलता कहाँ और किस रुप में प्रतिक्षा कर रही हो रही कोई नहीं जानता हम निराश रहते हैं पर वह खिंचता रहता है…पुराने और वो भी सफल सहपाठी को मिलकर जो प्रसन्नता होती होती है इससे अच्छी व्याख्या नहीं हो सकती…।बधाई!!!

  3. Yah kahani ho ya haqeeqat, par baat mujhe apne purane dino ki taraf le gayi hai. Main padhane mein bahut accha nahin tha, hamesha class ki sabase peechhe ki seat par baithata tha. Taiyari main first class ki karata tha , par hamesha second class ya good second class lata tha. Meri shuru ki padhai grameen anchal mein hui hai. Nishchay hee grameen anchalon mein vikas hua hai, lekin isake saath saath bahut si samasyayen bhi aa gayin hain. Maine apane prayason se bina kisi bhi byakti ki sahayata liye Electrotridoshagraphy aur 4 dimensional Electorcardiograhy kee takanikon ka aavishkar kiya hai, jise aap sabhi log meri website: http://etgind.wordpress.com par dekha sakatein hain.

  4. पुराने मित्र हमेशा पुरानी यादों को सामने ले आते हैं । अच्छी बात है कि आपके सहपाठी गाँव में ही अपनि शिक्षा का सदुपयोग कर रहे हैं ।

  5. अपनि की जगह ‘अपनी’ पढ़ें ।

  6. बहुत अच्छा लगा आपके सहपाठियों के बारे में जानकर व उनके अथक प्रयास व सफलता के बारे में जानकर ।
    घुघूती बासूती

  7. अच्छा लगा यह लेख! खासकर ये बातें-
    १. आपने अपने साथियों के लिये प्रयास किये अपने नंबर कटवाये!
    २.ज्यादातर वे ही लोग जीवन मे अच्छा कर रहे थे जो सामान्य विद्यार्थी थे…
    ३. ज्यादातर लोग विकास के लिये बडे शहरो‍ की तरफ़ पलायन करते है‍ तब मेरे सहपाठी विकास को हमारे छोटे शहर मे लाने का प्रयास कर रहे है‍….

    आप अच्छी विद्यार्थी रहीं। आपके साथियों ने एम.एस.सी.करने के बाद एम.बी.बी.एस. किया। आप अक्सर अपने घरेलू महिला होने की बात कहती हैं इस रूप में कि आप एक आम घरेलू महिला हैं कोई खास व्यक्ति नहीं! अपने मित्र से मिलना आपके मन में यह भाव नहीं जगाता कि आप भी कुछ खास करके घरेलू महिला के साथ-साथ कुछ उपलब्धियां हासिल करें! 🙂 मेरा हमेशा से मानना रहा है कि मेहनत, लगन और समर्पण व्यक्ति की हर कमीं को पूरा कर देते हैं। लेख पढ़ना ए सुखद अनुभव रहा!

  8. purane dostson se milna sach mein ek achha anybhav hota hai!
    lekin aap ka lekh ne is chhoti si kushi ko aur bhi sukhad bana diya hai!
    you know my hindi is as good as inzamam’s english…….
    but still i just made a try
    hope u like it!
    I’ll make sure i follow this blog regularly……..
    atleast tab to meri hindi sudhar jayegi!

  9. रचना जी आपने यादें ताजा करा दीं, बाटनी का तो कम लेकिन जुलॉजी का प्रैक्टिकल हम लोग अक्सर छोड़ दिया करते थे। और आखिरी साल मे जुलॉजी ही छोड़ दी 🙂

    academics मे अच्छा होना और व्यावहारिक जीवन मे सफ़ल होना दो बिल्कुल ही भिन्न बातें हैं…..

    ये भी काफ़ी हद तक सच है।

  10. अच्छा लगा! पुराने दोस्तों से मिलकर जो खुशी होती है, उसे में समझ सकता हूँ। यादों के इस सिलसिले को जारी रखें….

  11. पुराने मित्रों अथवा सहपाठियों से मिलना हमेशा सुखद होता है। यह आश्चर्यजनक है कि मिस्टर एन ने एमएससी के बाद एमबीबीएस, एम डी किया।

    प्रैक्टिकल वाली इस तरह की बातें मेरे साथ भी हो चुकी हैं। इस पर फिर कभी। 🙂

  12. A very interesting anecdote!

  13. @ समीर जी एवं दिव्याभ, धन्यवाद!

    @ डॊ. बाजपेयी जी, ये बिल्कुल हकीकत है….आपका प्रयास निश्चय ही सराहनीय है….

    @ मनीष जी एवं घुघुति जी, टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद.

    @ अनूप जी, जैसे आपने कहा—
    *अपने मित्र से मिलना आपके मन में यह भाव नहीं जगाता कि आप भी कुछ खास करके घरेलू महिला के साथ-साथ कुछ उपलब्धियां हासिल करें!*
    ..मन करता तो बहुत है!……
    टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद.

    @ केतकी, हां जी! जल्दी से हिन्दी सुधारो अपनी ! वैसे तुम्हारी हिन्दी इन्जमाम की इन्गलिश से अच्छी है! 🙂 अगली बार हिन्दी लिखना…

    @ मिश्र जी और जोशी जी, टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद.

    @ श्रीश जी, आश्चर्यजनक बात है तभी तो लिखा ना मैने! आप भी अपने अनुभव बताइयेगा कभी….

    @ Panini, nice to see you here! thanks for taking time out to read and understand ‘tough’ ( do more reading and it won’t be tough for you any more!) hindi…

  14. जी आप ने बिलकुल ठीक कहा पढ़ाई में सफल होना एक बात हैं और व्यवहारिक जीवन में सफल होना दुसरी।
    कई ऐसे सहपाठी हैं मेरे जो इस कथन को सच साबित करते हैं।
    और यह तो बहुत अच्छी बात हैं की उच्च शिक्षा के बाद लोग अपने देश ,अपने शहर ,अपने गावं के विकास में योगदान दे रहे हैं। और अगर यह लोग अपने ही दोस्तो में से हो तो ख़ुशी और क़द दोनो ऊंचे हो जाते हैं……

  15. प्रिया जी, आपकी टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद!

  16. Mujhe bhi bada achcha laga is story ko pad kar actuly hamare doshto ko hi nahi balki ham sab ko aisa hi karna chahiye jishshe keval hamara sahar hi nahi hamara INDIA bhi taraki kare TANK’S YO YOU BYE-BYE.


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