यूँ कहने को तो हर इन्सान और उसकी जिन्दगी खास होती है.लेकिन जो आम है वो है जीवन को सफल बनाने की जद्दोजहद…संघर्ष…किसी के लिये जरा सा ज्यादा और किसी के लिये जरा सा कम….
इन दिनो बच्चों को निरीह प्राणियों/ वस्तुओं की अत्मकथा पढाई लिखाई जा रही है, जैसे कलम की, पेड की, आदि….जब इन सबकी हो सकती है तो मेरी क्यों नही? मै तो हाड- मांस की चलती फिरती जीव हूँ मेरी भी होगी ही!
सूचना- किन्ही अपरिहार्य कारणों से इस पोस्ट का शीर्षक “आत्मकथा” नही रखा गया है.:)
वो सब मेरी आत्मकथा के ही तो हिस्से हैं! 🙂
हर चौबीस घंटे बाद सूरज एक नया दिन लेकर आ जाता है,
हर रात को चांद उसे समेट कर वापिस ले जाता है!
तन और मन को समृद्ध करने की रोज की ही उहा-पोह है!
कभी सुगम रास्ते तो कभी अवरोह है!!
लाभ हानि, खोने पाने, सुख दुख के हिसाब हैं,
नियति और कर्म के अन सुलझे सवाल जवाब हैं!
जो हम कर पाते हैं वो बस प्रयास है!
फल का तो पता नही, साथ सिर्फ आस है!
जिन्दगी का कठिन खेल अपनी सामर्थ्य से खेल रहे है!
हर नये दिन को बीते कल मे ढकेल रहे हैं!!
हर दिन उम्र की सीढियाँ चढ रहे हैं!
जीवन जीने की ये सब जो व्यथा है!
वही तो मेरी आत्मकथा है!!!!!
🙂
जीवन क्या है? एक ईश्वरीय प्रथा है!
तेरी मेरी सबकी, यानि “आमकथा” है
हर आम जिदगी के लगभग यही रंग है!
या आपके जीवन के कोई अलग ढंग हैं?-
अगर अलग हैं, तो मुझे बताइयेगा!
अपनी जिन्दगी से मुझे भी मिलवाइयेगा.. 🙂