इस तरह की बात अब हर दिन सुनाई देती है.. दुख होता है, लेकिन दुख होने की भी एक आदत सी पड जाती है… लेकिन घटना जब अपने आस पास की ही हो तो दुख होने के साथ साथ बेचैनी भी होती है…
समाज मे धैर्य और सहनशीलता की जगह अब जोश, जूनून और उग्रता लेती जा रही है..
बात कल ही की है.. नजदीक के एक स्कूल मे क्लास मे बेन्च पर बैठने की जगह को लेकर ९वी कक्षा के दो छात्रो मे कहासुनी हुई.. फ़िर मारपीट… एक बच्चे ने दूसरे को इतनी बुरी तरह पीट डाला कि उसकी मत्यु हो गई… बच्चे ने शायद जान लेने के लिये न भी मारा हो लेकिन जाहिर है इतनी बुरी तरह पीटते हुए उसे डर भी नही लगा!
.. और भी दुखद ये है कि जिस बच्चे ने पिटाई की थी, उसके पिता ( जो कि किसी बीमारी के चलते अस्पताल मे भर्ती थे), ने अपने बच्चे से हुए अपराध की बात सुनकर सदमे से दम तोड दिया…
….. ये बात उस स्कूल की है जहां के बच्चों के माता पिता अनपढ नही होंगे.,.
समझ नही आता कल को ये बच्चे बडे होकर कैसा समाज बनाएंगे….
इतना गुस्सा??

स्माइल……….:)
कल ऒस्कर समारोह मे संगीतकार रहमान की “जय” के साथ ही पिन्की की “स्माइल” भी चर्चित रही. पिन्की को देख मुझे गुड्डी याद आ गयी.
बात कुछ १० साल पुरानी है. उन दिनो हम दूसरे शहर मे रहते थे. वहां गुड्डी हमारे घर आई थी. पिन्की की तरह ही गुड्डी का भी जन्म से ही होंठ कटाहुआ था. जिस तरह की समस्या गुड्डी को थी उसे ३ शल्यक्रिया के बाद आसानी से बिल्कुल ठीक किया जा सकता था. लेकिन जितनी कम उम्र मे ये शल्यक्रिया हो जाये उतना ही अच्छा होता है. किन्ही परिस्थितीयो की वजह से उसकी शल्यक्रिया जल्दी नही कराई जा सकी. जब वो कुछ बडी हुई तब उसकी शल्यक्रिया हो पाई, लेकिन अब भी उसके तालू मे एक छेद रह गया था, जिसकी वजह से उसके उच्चारण साफ़ नही थे. इसके लिये एक और शल्यक्रिया होनी थी और अब तक गुड्डी १८/ १९ वर्ष की हो गयी थी.
हमारे शहर मे इस तरह की प्लास्टिक सर्जरी के लिये प्रसिद्ध एक चिकित्सक थे. जब गुड्डी को उन्हे दिखाया गया तो उन्होने कहा कि दो शल्यक्रिया के बाद गुड्डी पूरी तरह से ठीक हो सकेगी. पहली बार मे वे जीभ का कुछ टुकडा उसके तालू के छेद मे लगा देंगे और जीभ को तालू के साथ ही सिल दिया जायेगा ताकि वो हिस्सा जल्दी और पूरी तरह भर जाये. इसी तरह २०/२२ दिन रखने के बाद दूसरी बार मे जीभ को अलग कर दिया जायेगा. इस दौरान गुड्डी सिर्फ़ दूध और अन्य पेय ही ले सकती थी और उसे सर्दी या खांसी, छींक न हो इसका खास ध्यान रखना था.
पहली शल्यक्रिया जो कि मेजर थी और करीब ४ घन्टे चली, सफ़ल रही. कुछ दिन उसके माता- पिता साथ रहे फ़िर उन्हे अपने अपने काम के लिये वापिस जाना था. अब उसका छोटा भाई आया और हम लोग थे ही. मेरे घर से अस्पताल बहुत दूर था फ़िर भी मै और दीपक अपनी बेटियों के साथ, हर दिन शाम उनके लिये खाना लेकर गुड्डी से मिलने जाते. उन दिनों गुड्डी की जीभ सिली होने के कारण वो स्लेट पर लिख कर बतियाती. उसे कस कर पट्टी बांध दी गयी थी ताकि उसका मुंह ज्यादा खुले ही ना ! वो सिर्फ़ द्रव पदार्थ ही ले पाती थी, लेकिन उसने कभी भी किसी तरह की शिकायत नही की. दोनो भाई बहन आराम से रहे.. परिस्थितीयां सब कुछ सिखा देती है इन्सान को.. उसके लिये उम्र मे बडा होना जरूरी नही..
अस्पताल मे ज्यादातर मरीज जल जाने के बाद त्वचा को सुधारने वाले होते. ज्यातातर शल्यक्रिया ३-४ चरणों मे पूरी होती है. एक लडकी थी जिसकी दो उंगलियां किसी मशीन मे आने से बुरी तरह खराब हो गयी थी. उसके पोरो को यथावत करने के लिये उसकी दोनो उंगलियों पर त्वचा लगाने के बाद पेट मे बाजू से छिद्र करके उसमे दोनो उंगलियो को डाल कर सिल दिया गया था! ऐसा इसलिये किया गया था ताकि जीवित मांसपेशियों के रक्त प्रवाह के साथ जो नयी त्वचा लगायी गयी है वो पोशित हो और नयी जगह पर ठीक से स्थापित हो पाये.
अब गुड्डी की दूसरी, अपेक्षाक्रत छोटी शल्यक्रिया होनी थी.. गुड्डी और हममे इतना विश्वास हो गया था कि उसके माता पिता नही आये तो भी ये काम हो जायेगा…
दीपक को उस दिन कोई जरूरी काम था तो मुझे वहां होना था, शल्यक्रिया के वक्त. शल्यक्रिया के पहले दिन शाम को ही हम चिकित्सक से मिलने पहुंचे, उन्हे बताने कि मै रहूंगी शल्यक्रिया के वक्त तो उन्होने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा और शायद मेरी डील- डौल से मेरी उम्र का अन्दाजा लगाया! मुस्कुराये, शायद सोच रहे होंगे *ये क्या करेगी! कहीं घबराकर इसे ही न कुछ हो जाये!* :). दीपक ने तुरन्त कहा-शी केन मेनेज.:) . थोडा डर तो मेरे मन मे था क्यूं कि जब पहली बार वाली शल्यक्रिया के बाद गुड्डी को बाहर लाया गया था तो उसकी दोनो आंखें और होंठ बुरी तरह सूजे हुए थे… काफ़ी देर तक उसके मुंह से खून आता रहा था….. डॊक्टर साहब ने पूछा क्या गुड्डी आपकी छोटी बहन है? मैने कहा हां! ऐसा ही समझ लीजिये..(अस्पताल मे सब लोग यही मान रहे थे)..
दूसरी शल्यक्रिया भी सफ़ल रही और शारिरीक रूप मे उसकी समस्या अब बिल्कुल खत्म हो चुकी थी लेकिन उसके उच्चारण मे सुधार होना अभी बाकी था.. चिकित्सक ने बताया था कि इतनी उम्र तक गुड्डी जिस तरह से बोलती रही उस तरह से उसके मस्तिष्क मे वो अक्षर वैसे ही अन्कित हो चुके हैं और हर अक्षर के लिये जीभ और तालू का सही तालमेल होने मे समय लगेगा…..
गुड्डी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद कुछ दिन हमारे साथ रहकर अपने घर चली गयी..
सुन्दर होने के साथ ही गुड्डी होशियार भी थी ही…. उसने स्नातकोत्तर तक पढाई की… उसकी उच्चारण समस्या पूरी तरह से ठीक तो नही हो पाई.. लेकिन अब उसकी शादी हो चुकी है और तारीफ़ की बात ये है कि उसके पति जो कि शारीरिक रूप से पूरी तरह सामान्य और रंग रूप मे भी अच्छे हैं, ने गुड्डी की उस बात को नजरअन्दाज करते हुए उसके अन्य गुणों को देखकर उससे शादी की! अब गुड्डी अपने परिवार के साथ खुश है!
