आज मैने एक पत्रिका मे “CLERIHEW ” के बारे मे पढा.. एक ब्रिटिश लेखक श्री Edmund Clerihew Benley (१८७५- १९५६) , इसके जनक माने जाते हैं..
ये चार पन्क्तियों वाली, मौज के लिये लिखी, छोटी कविता होती है.. इसे लिखने के कुछ नियम इस तरह हैं–
१. उनका तुकबन्दी का तरीका “aabb ” होना चाहिये यानि पहली दो और अन्तिम दो पन्क्तियों की तुकबन्दी होनी चाहिये ..
२. ये किसी चर्चित, मशहूर हस्ती के बारे मे हो्ना चाहिये, जिनका नाम पहली पन्क्ति मे लिया जाये..
३. इसे “मीटर” मे होना ही चाहिये ऐसा जरूरी नही..
ये नियम अन्ग्रेजी भाषा के लिये होंगे, लेकिन मैने हिन्दी मे कोशिश की है–
** इसका शीर्षक मैने चतु:+ पन्क्तियां = चतुर्पन्क्तियां ( यानि चार पन्क्तियां ) इस तरह से दिया है .
**नही जानती मै कि इस तरह की सन्धि जो चतु: + भुज = चतुर्भुज की तर्ज पर की है, सही है या गलत
ब्लॊगीय फ़्रीडम** के तहत मैने ऐसा किया है! 🙂
थोडे मजे के लिये उसे “चतुर पन्क्तियां” कह दिया…
१. सुना है “बहन जी” इस बार पी एम बनेंगी!
पता नही फ़िर देश को किस तरफ़ ढकेलेंगी!
अपने मत का उपयोग कर बुद्धिजीवियों को कुछ करना होगा,
वरना ्भविष्य मे जातिगत राजनीति की नीतियों से मरना होगा!
२.हमारे प्रधा्नमन्त्री, डॊ. मनमोहन सिंह जिनका नाम है!
राजनीती को छोड बाकी सब जिनका काम है!
इनकी “अर्थ शास्त्रीयता” ने देश को मन्दी मे भी सम्भाला है,
इनकी मित भाषिता ने वाचाल विपक्ष को भी पछाड डाला है!
३. ये हैं ऒस्कर विजेता भारतीय-” रहमान”
लोग मानते हैं इन्हे संगीतज्ञ महान!
कोई होता तो ऒस्कर के बाद हर चैनल, अखबार पर छा जाता,
लेकिन इन्हे बस काम से लगाव है, दिखावा रास नही आता!
४. एक हैं सबके चहेते- आमिर खान,
लोग इन्हे कहें बालीवुड की शान!
कभी ये “गजनी” बन “एट पैक्स” लहराते हैं
और कभी कभी तारों को जमीन पर ले आते हैं!
५. ये हैं हमारे अपने श्री समीर लाल!
सबके चहेते ब्लॊगर, उदासी के काल!
हास्य व्यंग लेखन से मुस्कान फ़ैलाना इनके बांये हाथ का खेल है!
और टिप्पणियां ( * लेना-देना ) तो जैसे इनके हाथों की मैल है! 🙂
६. ये हैं फ़ुरसतीया जी– लम्बी पोस्ट के महारथी,
या कहूं इन्हे, हिन्दी ब्लॊगजगत के सारथी!
छोटे या बडे, हर मुद्दे पर बतियाते हैं!
शब्द जाल मे उलझा कर सबकी मौज उडाते है!
——
*** क्या आप इसमे कुछ जोडना चाहेंगे ?
पुन:श्च—
** अभी मैने इसमे अजित जी को भी शामिल किया है 🙂
ये हैं ’शब्द सारथी’ श्री अजित वडनेरकर,
जो हमे करवाते हैं शब्दों का सफ़र!
शब्द की ऐसी बाल की खाल निकालते हैं,
कि हम शब्द को नख से शिख तक पहचान जाते हैं! 🙂
**** और रवि जी और मैथिली जी भी :)-
आप “रवि रतलामी” का नाम वहां जरूर पाईयेगा,
अगर आप हिन्दी ब्लॊग जगत ्के इतिहास मे जाईयेगा!
वाद- विवाद न इनको भाए,
गुप चुप काम ये करते जायें!
ये हैं- “ब्लॊगवाणी” वाले मैथिली जी हमारे!
जहां ब्लॊग शामिल हैं सारे, मेरे और तुम्हारे 🙂
हिन्दी लेखन से जुडी बात हम कैसे जायें भूल!
इन्ही की तो देन है हमको ” कैफ़ेहिन्दी टूल“!
ये हैं धूम धूम ” धोनी” , भारतीय कप्तान!
लोग इन्हे कहने लगे अभी से महान!
लेकिन कपिल देव की जगह ये तभी ले पायेंगे,
जब भारत को एक विश्व कप (५०-५० 🙂 ) दिलायेंगे!
और टिप्पणी मे मिली ’चतुर पन्क्तियां’ —-
और इनसे मिलो ये हमारे ““मनीष कुमार””,
गानों की इनके ब्लोग पर भरमार !
संगीत-माला की पायदान पर गाने दर गाने चढाते हैं,
और हर गाने के साथ हमारी जानकारी बढाते है !!
““उन्मुक्त जी” ” तो हाजिर रहते है हर समय,
उनको क्यों छोड दिया तुमने,क्या लगता है भय !
डरो मत मुन्ने के बापू कुछ नही पूछेंगे ,
और पूछेंगे तो हम दोनो मिल कर बूझेंगे !!
जाने कहाँ अंतरजाल में फ़ँस गया तुम्हार ” मुन्ना भाई “,
जिसकी ब्लोगिंग की शुरूआत कुछ दिन पुर्व ही मैने करवाई !
कंप्यूटर या नेट पता नही क्या खराब है उसका ,
अभी डायरी में लिखना पडता है,उसको लग गया है चस्का !!
तीसरा खंभा के द्विवेदी जी को कौन नही जानता!
हर कोई समस्या लिखकर जिनसे उचित राय मांगता!
जितनी हो सके, सबकी मदद करते हैं,
अपने हक के लिये लडने का हौसला ये लोगों मे भरते हैं!
अब है बारी ताऊ रामपुरिया जी की,
पता नही क्यों पसन्द नहीं इन्हें नजदीकी
इन्हे हर कोई नही ढूँढ पाते हैं
क्योंकि ये किसी भी ब्लोगर को अपना पता नही बताते हैं
– अर्चना
hai na ek pari ranju ji gulab si
ishq mein dubi,lage kisi khwab si
amruta ki khusbu bikharti hai mann mein
rachi hai shabdon ki jadugari inki kan kan mein.
– महक
अर्चना जी
,
नहीं मालुम, क्यों लोग मुझसे खाते भय,
मैं तो लोगों में भरता अभय।
नहीं मुझे किसी से शिकवा या सवाल,
लोग ही मुझे करते हैं हलाल।
– उन्मुक्त
“रचना जी” के लेखन में अद्भुत सी इक धार है
हमें सिखा दी ऐसी कविता जिसमें पंक्ति चार है,
इसी तरह से रहे सीखते, अगर तुम्हारी पाती से,
रोशन नाम हमारा होगा, ज्ञान की जलती बाती से.
– समीर लाल
दिल की बातें लिखनेवाले हैं डॉक्टर अनुराग
सबके दिल तक जाती है उनकी ही आवाज़
जो भी लिखते लगता जैसे सबकी बात वही है
जो भी पढ़ता कहकर जाता; “आपकी बात सही है.”
– शिव कुमार मिश्रा
** ये तो कमाल हो गया!! चतुर पंक्तियों के चक्कर मे आकर मेरे एक “अकवि मित्र” ने भी प्रयास किया और अभी अभी ये पन्क्तियां भेजी हैं —
हे देवकीनंदन
सुना तुम ही ने द्रौपदी क्रन्दन
जब द्यूत में कुंती पुत्रों ने बाजी थी हारी
और दाँव पर लगी थी निज कुल की ही नारी!!