” नमस्ते!! कैसी हैं आप? ” जैसे ही मैने हिन्दी की उन वृद्ध अध्यापिका से कहा, वे खुश हो गयीं और मुझे अपने पास ही जगह देकर बैठने को कहा… मुस्कुरा कर उन्होने नमस्ते कहा और कहने लगीं आजकल तो कोई कहता नही है नमस्ते , तुमने कहा तो अच्छा लगा!
.. कई और बच्चे अपने माता/ पिता के साथ आ रहे थे लेकिन मैने देखा ज्यादातर ने उन अध्यापिका को नजरन्दाज ही किया.. मैने अपनी बेटी से मजाक से कहा -कैसे बच्चे हैं तुम्हारी स्कूल के, कोई भी अपनी टीचर को नमस्ते नही कह रहा.. मेरी बेटी ने तुरन्त ही मुस्कान के साथ कहा- लेकिन किसी के भी मम्मी या पापा ने उनसे कुछ नही कहा!!
समय के साथ अभिवादन के तौर तरीके भी बदल रहे हैं.. चरण स्पर्श का स्थान नमस्ते ने लिया अब नमस्ते का स्थान “हेलो” ले रहा है… बच्चों के कहने से पहले घर मे आये अन्कल या आन्टी ही उन्हे हेलो कह कर अभिवादन कर लेते है..जब हम बच्चे थे तो घर मे किसी भी मेहमान के आने पर उनका अभिवादन जरूरी होता.. अगर उन्हे नजरन्दाज कर दिया जाता तो दादी और पिताजी की डांट पडती उन्ही के सामने और फ़िर पैर छूकर ही काम बनता!
.. बुजुर्ग लोग अब भी पुराने तौर तरीकों ्को ही पसन्द करते हैं.हाल ही मे मै एक मित्र के घर एक पारिवारिक समारोह मे शामिल होने गयी थी वहां उनके वृद्ध पिता से पहली बार मुलाकात हुई.. मैने नमस्ते कह उनका अभिवादन किया.. उन्होने कहा -अरे तुम तो नासिक से, पुण्य नगरी से आई हो! मुझे तुम्हारे पैर छूने चाहिये!! ” मुझे तुरन्त अपनी गलती का अह्सास हुआ और मैने पैर छूकर अपनी गलती सुधारी!
.. पुराने दिनो मे पूरा मोहल्ला ही एक परिवार की तरह हुआ करता था लेकिन अब तो आस – पडोस के भी मायने बदल गये हैं.. मोहल्ले मे अभिवादन भर की पहचान हो तो भी बहुत है! जरुरत पडने पर ही पहचान इससे आगे बढती है.. ऐसा ही कुछ पुराना एक किस्सा है- अपनी दोनो बेटियों को लेकर मै घर के पास ही एक बगीचे मे शाम को जाया करती थी.. वहीं पास ही की एक महिला अपनी नन्ही बेटी को लेकर आती थी.. रोज ही हम मिलते. मै उन्हे नमस्ते कहती लेकिन उन्हे अभिवादन भर की पह्चान मे भी कोई रुचि नही थी जबकि हमारे छोटे बच्चे ऐसे मिल जुल कर खेलते मानो उनकी बरसों पुरानी पह्चान हो! :). वे मेरी नमस्ते का जवाब अनमने ढंग से देतीं लेकिन मेरे अन्दर माता पिता के अति विनम्र जीन्स के चलते मैने कभी उन्हे “उंह….” की तरह का भाव नही दर्शाया बल्कि हमेशा मेरी तरफ़ से यही रहा -” ठीक है! जैसी तुम्हारी मर्जी! “…. एक दिन जब मै वहां पहुंची तो उनके तेवर बिल्कुल ही बदले हुए थे.. उन्होने चहकते हुए नमस्ते कह कर मेरा स्वागत किया.. लगा जैसे वे मेरा इन्तजार कर रही थीं.. दुनिया भर की बातें की और अन्त मे जब उन्होने मुद्दे की बात की तभी मुझे उनके इस बदले स्वरूप का कारण ्समझ मे आया.. दरअसल उन्हे किसी सिलसिले मे मेरी मदद चाहिये थी और मेरी पडोसन ने उन्हे बताया था कि मै बहुत भली हूं और मै जरूर उनकी मदद कर दूंगी!
तो मित्रों हमे अपने आस पास के लोगों से अभिवादन भर की पह्चान जरूर रखनी चाहिये.. क्यों कि क्या पता कब किसकी कितनी जरूरत पड जाये! 🙂
नमस्कार! 🙂
पता नहीं… लेकिन हम तो अनुभव करते हैं कि अभी भी तहजीब कायम है
नमस्ते जी…
अभिवादन स्वीकार करें. क्या पता कब?? 🙂
बहुत उम्दा लिखा है आप ने ।
अभिवादन पर बढिया लिखा आपने !!
अभिवादन के बदलते स्वरूप के बारे में बहुत अच्छी तरह से लिखा। अब लोग पैर छूते हैं तो बड़े अनमने ढंग से। कुछ लोग तो पैर की जगह घुटने छूते हैं। बहरहाल इसी बहाने इतने दिन बाद ये पोस्ट देखना अच्छा और सुखद लगा।
“आस पास के लोगों से अभिवादन भर की पह्चान जरूर रखनी चाहिये..”
बहुत सही कहा आपने
ज्यादातर तो अब हाथ जोडकर नमस्ते करने की बजाय केवल सिर हिला कर और पैर छूने के नाम पर थोडा सा झुक कर ही काम चला लेते हैं।
अभिवादन का तरीका भी बदल गया लगता है
प्रणाम स्वीकार करें
छोटे तक तो बच्चे जैसा सिखाया जाए वही करते हैं। हमें तो ऍसी ट्रेनिंग मिली थी कि जैसे ही घर का दरवाजा खोलते हाथ आटोमेटिकली नमस्कार की मुद्रा में आ जाते। हालत ये कि कई बार तो अपने छोटों को भी नमस्कार कर जाते 😉
मुझे भी कुछ कहना है….. नमस्ते।
कहूँ तो बहुत कुछ है मगर बस अभिवादन कर के लौट जा रही हूँ…!
@ सुनील जी, हाल ही मे शाहरुख खान ने एक स्टेज पर अपने make up man के पैर छूए हैं.. तो उम्मीद रखी जा सकती है. 🙂
@ समीर जी, शुक्रिया!! जो आपने अभिवादन स्वीकार किया! 🙂
@ man, शुक्रिया टिप्पणी के लिये !!
@ संगीता जी, शुक्रिया टिप्पणी के लिये !!
@ अनूप जी, शुक्रिया टिप्पणी के लिये. सही कहा आपने-
// कुछ लोग तो पैर की जगह घुटने छूते हैं।// 🙂
@ अन्तर सोहिल जी, प्रणाम! शुक्रिया टिप्पणी के लिये !!
@ मनीष जी, 🙂 🙂
@ उन्मुक्त जी, नमस्ते!! .. लेकिन आपको तो इसके आगे भी कुछ कहना चाहिये था. हमारी पहचान तो नमस्ते से आगे की है ना? 🙂
@ कन्चन, बहुत कुछ ना सही थोडा कुछ ही कह देतीं :).
Bahut sahi kaha aur aajkal ke mauqa-e-zaroorat ke hisaab se aapne kaha…! Shayad ye logon ko choti baat lage kintu inhi choti baaton se bade raaste khulte huye nazar aate hein!
Mein bahut prabhavit hui aapke iss lekh se…likhti rahein hamesha 🙂
Khush rahein sada
aapki dawn 😉
स्वकेन्द्रित जीवन मूल्यों की कष्टप्रद हकीकत ।
Meine kaha Namaste ji 🙂 kaisee hein aap?
Socha tha aaj kuch naya parhne ka mauqa milega… 🙂 to samajh gayeen na …jaldi se kuch likhiye 🙂
Umeed hai sab kushal mangal hai aapki taraf…
khyaal rakhiyega
😉
Rachana ji……..
mein to ye sochkaryahan aayee thi ke kuch naya parhne ko milega 😉
Umeed hai sab kheriyat hai aapki taraf… 🙂
khush rahein sada
Dawn
पाँव छू रहा हूँ, आशीर्वाद दीजियेगा।
🙂
Hay