ज़िन्दगी कहते हैं जिसको, सांस का इक सिलसिला है
लगती हमको खूब प्यारी, पर गज़ब की ये बला है!
सूर्य का है साथ थोड़ा, सांझ को हर दिन ढ़ला है,
साथ निश्चित है उसी का, घर मे जो दीपक जला है!
बढ़ रहा वो पांव आगे, जो कि हमने खुद चला है,
भीड़ मे हैं सब अकेले , फिर भी कहते काफ़िला है!
जाने कब किस तरह पलटे, भाग्य मेरा मनचला है,
चैन से जीने न देगा, वक्त का ये ज़लज़ला है!
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ज़िन्दगी……
