सूचना– इस पोस्ट का उद्देश्य किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति ( या ब्लॊगर ! )को आहत या अपमानित करना नही है… सिर्फ़ इस समस्या ( या स्थिती ) के बारे मे बात करना है… फ़िर भी किसी को कष्ट हो तो क्षमा करें..
भारत मे कई भाषाएं और बोलियां बोली जाती है और हर क्षेत्र का अपना एक लहजा है… हिन्दी भी पचासों तरह से बोली जाती है…कई लोग “स” को “श” और “श” को “स” बोलते हैं.. लेकिन मेरे विचार मे ये समस्या या स्थिती बोलने के लहजे से सम्बन्धित नही है, बल्कि व्यक्ति विशेष की आदत बन जाती है… ऐसा किसी शारिरिक कमजोरी की वजह से नही होता, क्यों कि वो दोनो ही अक्षर ठीक से बोल लेते हैं बस उनकी जगह बदल कर बोलते हैं.. आश्चर्य तो तब होता है जब वे लिखते समय भी ऐसा करते हैं!
जब बच्चा बोलना सीखता है तभी ध्यान देने पर इस तरह की समस्या शायद न हो.. बोलना सीखते समय अक्षर और शब्दों के उच्चारण दिमाग की स्मृति मे अन्कित हो जाते हैं.. बडे होने पर वही शब्द उच्चारित होते हैं. इस बात का जिक्र मैने “ गुड्डी” की बारे मे लिखी पोस्ट मे भी किया था….
तुतला कर बोलने की भी ज्यादातर वजह यही होती है कि, जब बच्चे बोलना सीखते हुए कुछ अक्षर गलत उच्चारित करते हैं, तो घर के लोग बजाये उसे सुधारने के खुद भी वैसे ही बोलने लगते हैं!
घर के लोग अगर टोकें तो उच्च्चारण ठीक किये जा सकते हैं… जब बच्चा कहे – “मुझे भी दाना है”, तो उसे ले जाने के पहले कहा जाये… “दाना है” नही, बोलो – ’जाना है” “ज” “ज” ज” –जाना है!! 🙂 “तलो’ नही “च’ च” च’ — चलो!! 🙂
मेरी बचपन की मित्र थी (है) वो हकला कर बोलती है. अक्षर सारे सही उच्चारित करती है लेकिन कभी कभी किसी अक्षर को वो बोल ही नही पाती… उसकी मां ने हमसे उसे टोकते रहने को कहा था और हमने कुछ हद तक उसकी समस्या को कम किया. उसके मामले मे डॊक्टर ने कहा था कि उसकी शारिरिक तौर पर उच्चारण के लिये कोइ समस्या नही है लेकिन घर मे उसकी विकलांग मौसी ( जो अन्य विकलांगताओं के आलावा ठीक से बोल नही पाती, बेहद मुश्किल से कुछ शब्द बोल पाती है) की वजह से शायद उसे इस तरह बोलने की आदत हुइ है.. हालांकि ये भी उतना ही सच है कि घर मे मौसी के अलावा भी चार लोग थे जो स्पष्ट बोलते थे…
भाषा के साथ साथ ही उच्चारण भी सही और स्पष्ट हों तो भाषा और भी अच्छी लगती है.. तो हमे इस समस्या का व्यावहारिक और समाजिक निदान करने के प्रयास करने चाहिये…