रीत……

मां उस बेटे के संग रहती, जिसकी ज्यादा थी न कमाई,
मां थोड़ी गुमसुम सी हो गई, नन्हे की चिट्ठी जो आई,
नन्हे ने अपनी प्रगती की खबर थी मां को भिजवाई,
मां के आंसू थम न सके जब मां ने वो चिट्ठी पढ़वाई!
बेटे ने लिखा था-
दस लाख की लागत से, मां मैने है फ़ैक्ट्री बनवाई,
कल उसके उद्घाटन मे कुछ पूजा थी मैने करवाई,
चाह रहा था तुम्हे बुलाना, पर देखो कितनी मंह्गाई,
बहू को भी वक्त नही है, बच्चों की है खूब पढ़ाई!
इस पार्सल संग भेज रहा हूं, तुम्हे और भैया को मिठाई

मां यह सुन बेचैन हो उठी, उसकी फ़ूट पड़ी रूलाई,
भैया भी कुछ दुखी हुए पर फ़िर भी दे रहे थे वो दुहाई –
मां! क्यूं छोटा मन करती हो, देना चाहिये तुम्हे बधाई!
मां बोली-
मुझको तो भूला, भूल गया वो अपना भाई ?
जिस भाभी ने स्नेह दिया है, उसकी भी उसे याद न आई ?
मेहनत से उसे बड़ा किया है, उसकी ये कीमत है चुकाई ?

अब भाभी धीरे से बोली , खुद को थी वो रोक न पाई –
मां! हमसे ही भूल हुई है, जाने क्यूं थी आस लगाई,
नन्हे ने क्या गलत किया है, दुनिया की ही रीत निभाई !!
———

Published in: on दिसम्बर 28, 2011 at 9:07 पूर्वाह्न  Comments (3)  

क्या पता मै कौन हूं!

” हमारी फ़ितरत ही ऐसी है कि
एक जैसी ठहर नही पाती है!
हर नये दिन के साथ वो भी बदल जाती है! ! 🙂

क्या पता मै कौन हूं!
वाणी या कि मौन हूं!
मै एक उजली आस हूं,
मै एक अथक प्रयास हूं!
अलगाव हूं, रूझान हूं,
जिम्मेदारी हूं, एहसान हूं!
मै सतह हूं, थाह हूं,
शक्ति मै अथाह हूं!
मै दुख हूं, हर्ष हूं,
साहस हूं, संघर्ष हूं!
प्रचूर हूं, अल्प हूं,
प्रयोग का प्रकल्प हूं,
समस्या हूं, विकल्प हूं!
मै एक द्रूढ संकल्प हूं!
मै एक तीव्र चाह हूं,
खुद ही अपनी राह हूं!
मै प्यार का सम्बन्ध हूं,
या कि मै अनुबन्ध हूं!
मै कर्म हूं और साधना,
और मै आराधना!
मै काव्य हूं और छन्द हूं,
और मै निबन्ध हूं!
आरंभ हूं और अन्त भी,
सूक्ष्म हूं, अनन्त भी!
कही गयी, अभिव्यक्त हूं,
या कि मै अव्यक्त हूं!
सत्य हूं, और स्वप्न हूं
भाग्य हूं, प्रयत्न हूं!
सफ़ल भी हूं, विफ़ल भी हूं,
प्रश्न मै और हल भी हूं!
कठिन हूं मै, सरल भी हूं,
कठोर भी, तरल भी हूं!
गूथी हुई, उलझन भी हूं,
और मै सुलझन भी हूं!
विचार की उत्प्रेरणा ,
मै कर्म की हूं प्रेरणा!
न्यून हूं, समग्र भी,
शांत हूं, और व्यग्र भी!
वेदना, संवेदना हूं
जड़ भी हूं, हूं चेतना!
सुनहरी उजास हूं !
मै आम नही खास हूं !! 🙂

Published in: on दिसम्बर 16, 2011 at 8:11 पूर्वाह्न  Comments (9)  

खास नही, आम हूं…..

हर तरह से तमाम हूं
मै खास नही, आम हूं!!
मै, मै हूं,
अनगिनत विचारों की कै हूं!
न पक्ष हूं, न विपक्ष हूं,
मै अपना ही गौण कक्ष हूं!
सवालों की फ़सल सींचता हूं,
हर खड़े हुए को खींचता हूं!
जवाबों का टोटा ( scarcity) हूं,
बिन पेंदे का लोटा हूं!
जिसे हर कोई बजा ले, मै वो धुन हूं,
गेहूं के साथ पिस जाने वाला घुन हूं!
रफ़्तार की लगाम हूं,
प्रगती पर लगा जाम हूं!
मै एक उजली आस हूं,
मै एक अथक प्रयास हूं!
मै अलगाव हूं, रूझान हूं,
जिम्मेदारी हूं, एहसान हूं!
तर्क, वितर्क, कुतर्क मेरा काम है,
बुद्धी नही विचारजीवी मेरा नाम है!!
…….

Published in: on दिसम्बर 15, 2011 at 9:17 पूर्वाह्न  Comments (7)