मां उस बेटे के संग रहती, जिसकी ज्यादा थी न कमाई,
मां थोड़ी गुमसुम सी हो गई, नन्हे की चिट्ठी जो आई,
नन्हे ने अपनी प्रगती की खबर थी मां को भिजवाई,
मां के आंसू थम न सके जब मां ने वो चिट्ठी पढ़वाई!
बेटे ने लिखा था-
दस लाख की लागत से, मां मैने है फ़ैक्ट्री बनवाई,
कल उसके उद्घाटन मे कुछ पूजा थी मैने करवाई,
चाह रहा था तुम्हे बुलाना, पर देखो कितनी मंह्गाई,
बहू को भी वक्त नही है, बच्चों की है खूब पढ़ाई!
इस पार्सल संग भेज रहा हूं, तुम्हे और भैया को मिठाई
मां यह सुन बेचैन हो उठी, उसकी फ़ूट पड़ी रूलाई,
भैया भी कुछ दुखी हुए पर फ़िर भी दे रहे थे वो दुहाई –
मां! क्यूं छोटा मन करती हो, देना चाहिये तुम्हे बधाई!
मां बोली-
मुझको तो भूला, भूल गया वो अपना भाई ?
जिस भाभी ने स्नेह दिया है, उसकी भी उसे याद न आई ?
मेहनत से उसे बड़ा किया है, उसकी ये कीमत है चुकाई ?
अब भाभी धीरे से बोली , खुद को थी वो रोक न पाई –
मां! हमसे ही भूल हुई है, जाने क्यूं थी आस लगाई,
नन्हे ने क्या गलत किया है, दुनिया की ही रीत निभाई !!
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