वो वृद्ध मेरे रिश्ते मे तो नही,पडोसी जरूर थे,
अपने जमाने मे अच्छे खासे मशहूर थे.
उन्होने मानो कोई पाप ही किया था,
एक ही नही, दो बेटोँ को जन्म दिया था.
एक बेटा सरकारी अफसर, दूसरे की निजी कँपनी थी,
दोनोँ मे से किसी को कोई नही कमी थी.
हर तरह की सँपत्त्ति, खुद के मकान थे,
लेकिन, उनके लिये पिता गैर जरूरी सामान थे.
बहुओँ को ससुर, प्राईवेसी मे दखल लगते थे,
नातियोँ को दादा, आधुनिकता मे खलल लगते थे.
बेटोँ के घर उनका अलग कमरा बना था,
ड्राईँग रूम मेँ बैठना, उनके लिये मना था.
अपने दुख उन्हे खुद ही सहना था,
बारी-बारी से बेटोँ के घर पर रहना था.
जिसके घर मे रहते, उसके ढँग से चलना था,
बुढापे मेँ अब, उन्हेँ आदतेँ बदलना था.
सारे बन्धन छूटे, जो मेहनत से बनाए थे,
सारे रिश्ते टूटे, जो आज तक निभाए थे.
मेरी तरफ उनका कुछ खास झुकाव था,
मेरा भी उनसे बहुत लगाव था.
मैँने कहा था-
आप इतना अपमान क्यूँ सहते हो?
पुश्तैनी मकान मे क्यूँ नही रहते हो?
निरी भावनाओँ मे और मत बहिए,
अपने स्वाभिमान, मर्जी से रहिए.
वे बोले-
हमारा क्या है, थोडा और सह लेँगे,
बाद मे बेटे कम से कम ये तो नही कहेँगे-
बाबूजी खुद तो अपना अच्छा नाम कर गए,
और जाते जाते हमको बदनाम कर गए.
उनकी ये बातेँ मेरे लिए सबक थी,
उन्हेँ मान नही मिलने की मन मे कसक थी.
दुनिया का हर पिता अपने फर्ज इसी तरह निभाता है,
बच्चे पिता की चिँता करेँ,न करेँ,
वो आखिरी दम तक बच्चोँ की भलाई चाहता है.
आज उनकी मौत पर मैने भी दुख जताया,
पर सच मानिये,मेरे मन ने खुशी का जश्न मनाया!
मुझे लगा जैसे उनकी किस्मत खुल गई ,
और उन्हे इस जीवन से मुक्ति मिल गई!
रोज उनके मरने की कामना जो कर रहे थे,
जमाने के सामने आज खूब रो रहे थे!!
—-
वृद्ध
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well said
बिल्कुल कटु सत्य है। इसके कई और रंग या पहलू भी हैं
@ kali, thanks.
@ himanshu bhai, thanks.
Sach me bahut sundar kavita hai.
jeevan ki kadvi sacchai,par bete yah bhool jate he ki itihas dohraya jata he.