सीधा-साधा रास्ता भी मुझको,
अब लगता चौराहा-सा,
जाने किस धुन मे भाग रहा,
है हर इन्सा बौराया-सा.
पैसा-पैसा करता रह्ता,
है वो अमीर इतराया-सा,
जैसे-तैसे जीवन जीता,
है वो गरीब सकुचाया-सा.
ज्ञानी होने का ढोँग करे,
वो पढा-लिखा इठलाया-सा,
अनपढ है जो, वो भी बस यूँही,
है पडा हुआ अलसाया-सा.
किस राह से मुझको लक्ष्य मिले,
सोचे युवा भरमाया-सा,
जीवन की इस भाग-दौड मे,
है बालक घबराया-सा.
विज्ञान से सब सुख पा लूँगा,
सोचे मानव ललचाया-सा.
इतना बदला मेरा मानव??
सोच ईश्वर पछताया-सा!!!!
बहुत खूब।
सुंदर रचना है. नयी प्रविष्टी की जानकारी चिठ्ठा चर्चा के लिये ईमेल से भिजवा दिया करें, जब तक नारद की तबियत नासाज है:
http://chitthacharcha.blogspot.com/
हिमान्शु भाई और समीर जी,बहुत धन्यवाद.
बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने..
मैं इसे औरों को पढाना चाहूंगा.. आपका ब्लोग लिंक कर रहा हूं..
धन्यवाद..
लिखते रहें.. 🙂
गौरव जी, पसँदगी का बहुत शुक्रिया!!और आपके ब्लोग पर बहुत बढिया सँग्रह किया है आपने..लेकिन मुझे वहाँ मेरे ब्लोग की लिन्क कहीं नही दिखी?
[…] ——————————-रचना बजाज.. […]
“Asamanjas”….was awesome…very meaningfully woven words
Thanks to you..
We always need something good to read and go in life..
Keep writing.. 🙂
सत्य,सँच.
mere comp. par hindi fonts nahi he…sorry..
aap bahut achha dil ko chhune vala …
meri shubhkamnayen hamesha aapake saath he.
as I website owner I believe the articles here is rattling wonderful, appreciate it for your efforts.