हे भगवान !!!

(** मेरा पत्र भगवान के नाम**)

नमस्कार.
मै आप ही की बनाई सृष्टि के एक हिस्से, ‘भारत’ से हूँ. कुछ दिनों पहले से ही ये बातें आपसे करना चाह रही थी..देर से ही सही… आप इस पर गौर करेंगे ऐसी आशा है.
यहाँ भारत मे सब कुछ ठीक नहीं है और मुझे लगता है आपके वहाँ भी इन दिनों कुछ गड़बड़ चल रही है.
थोड़े-थोड़े दिनो में ये क्या हो जाता है आपको? आप अजीब अजीब से चमत्कार दिखाने लगते हैं! कभी दूध पीने लगे, कभी किसी दीवार पर दिखने लगे तो कभी समुद्र का पानी मीठा बना दिया! अब ये सब करने की आपको क्या जरूरत आ पड़ती है? क्या आपको डर लगता है कि लोगों का आप पर से विश्वास उठ रहा है? अगर ये बात है तो आप मेरा यकीन मानिये कि ऐसा कुछ नही हो रहा.भारत मे शायद ही ऐसे लोग हैं,जो आपको नही मानते. अगर राज की बात बताऊँ तो जो लोग खुद को नास्तिक कहते नही थकते, वो भी अपने जन्मदिन के दिन मन्दिर जाते हैं!!,यदि वे शादी-शुदा हैं तो अपनी पत्नी की खुशी के बहाने से और अगर शादी-शुदा नही हैं तो अपनी माँ की खुशी के बहाने से!!
और फिर हजारों-हजार मन्दिर, हजारों पोथियाँ और हजारों कथाएँ क्या कम हैं जो कोई आपके अस्तित्व को नकारने की हिम्मत करे ?
इन दिनों तो लोग करोड़ों रूपये खर्च करके आपके लिये विभिन्न शहरों मे भव्य मन्दिर बनवा रहे हैं, लाखों रूपयों के मुकुट चढ़ा रहे हैं! और ये सब तब हो रहा है जब कि हजारों लोग ऐसे हैं, जो दो जून की रोटी खाने को मोहताज हैं, उनके रहने को घर नही है. अब इतना सब होकर भी आपको शान्ति नही है?
अब सही वक्त आ गया है कि आप ये छोटे- मोटे चमत्कार छोड़कर कुछ असली जादू दिखाएँ.
चलिये मै बताती हूँ आपको क्या करना है—-
१. जो किसान हर रोज कर्ज से परेशान होकर आत्महत्याएँ कर रहे हैं या फिर अगले कुछ दिनों मे करने वाले हैं, उनके घरों मे जाकर कुछ पैसे रख दें,ज्यादा नही कुछ सौ रूपये ही चाहिये उन्हें..

२. कुछ गाँवों मे गरीबी की वजह से आज भी बच्चे भूख से मर जाते हैं,जाइये और उनके घर के खाली डिब्बों मे कुछ अन्न रख दीजिये…

३. आप किसी शहर मे, किसी दीवार पर इस तरह से उभर कर, क्यों पहले से ही जीवन से परेशान लोगों को परेशान करते हैं ? दिखना ही है तो हमारे देश की संसद की दीवारों पर दिखाई दीजिये!! वहाँ काम कर रहे लोगों ने दुनिया की किसी भी चीज से डरना छोड दिया है, हो सकता है आपको देखकर वे कुछ डरें और अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन करें…

४. अब ये दूध वगैरह पीना छोड़िये, भला आपको ये करना क्या शोभा देता है ??

और भी बहुत कुछ है कहने को..इन बातों पर आपकी प्रतिक्रिया देखकर बाकी बातें बताऊँगी…
और हाँ बहुत रह चुके आप छुप- छुप कर, अब सामने आइये और अपनी ही बनाई सृष्टि के दुख-सुख मे उसके साथी बनिये!!! अब तो अन्तर्जाल पर भी छद्म रहने का चलन नही रहा,यहाँ भी लोग वास्तविक हो चले हैं….
अगर आपके स्वर्ग मे भी अन्तर्जाल की सुविधा हो तो बताइयेगा….अब पत्र लिखने का जमाना नही रहा..ई-मेल या चैट के जरिये आपसे कई लोग सम्पर्क साध सकेंगे!!!!

धन्यवाद.
रचना.

Published in: on अक्टूबर 6, 2006 at 5:49 अपराह्न  Comments (10)  

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10 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. सृष्टी – सृष्टि
    हूँ.कुछ – हूँ. कुछ (विराम के बाद जगह)
    य़हाँ – यहाँ
    नही – नहीं
    दिनो – दिनों
    गडबड – गड़बड़
    थोडे-थोडे – थोड़े-थोड़े
    मे – में
    आपको ? – आपको? (विराम से पहले जगह नहीं)
    पडती – पड़ती
    हैं,जो – हैं, जो (विराम के बाद जगह)
    पोथीयाँ – पोथियाँ
    करोडों – करोड़ों
    विभीन्न – विभिन्न
    चढा – चढ़ा
    छोडकर – छोड़कर
    उन्हे – उन्हें
    सँसद – संसद
    छोडिये – छोड़िये
    बताउँगी – बताऊँगी

    (देखकर इस टिप्पणी को मिटा दें)

  2. @ विनय जी, बहुत शुक्रिया समय देकर गलतीयाँ (ये सही है?)बताने का. सुधार कर लिये हैं.ज्यादातर गलतीयाँ लापरवाही के चलते हुई हैं. आगे से उन्हे न दोहराऊँ, ये कोशिश करूँगी. धन्यवाद.

  3. बहुत शानदार लेख ! ये पंक्तियाँ मन को छू गईं।

    “आप किसी शहर मे, किसी दीवार पर इस तरह से उभर कर, क्यों पहले से ही जीवन से परेशान लोगों को परेशान करते हैं ? दिखना ही है तो हमारे देश की संसद की दीवारों पर दिखाई दीजिये!! वहाँ काम कर रहे लोगों ने दुनिया की किसी भी चीज से डरना छोड दिया है, हो सकता है आपको देखकर वे कुछ डरें और अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन करें…”

    और हाँ गलतीयाँ नहीं गलतियाँ होगा ।

  4. ये लेख शान्दार है ही मगर आप ही के इन शब्दों पर ……
    “…..थोड़े-थोड़े दिनो में ये क्या हो जाता है आपको? आप अजीब अजीब से चमत्कार दिखाने लगते हैं! कभी दूध पीने लगे, कभी किसी दीवार पर दिखने लगे तो कभी समुद्र का पानी मीठा बना दिया! अब ये सब करने की आपको क्या जरूरत आ पड़ती है?…..”
    लगता है भगवान मे इनसानियत आगई है 😉

  5. nice thoughts, well written post. congrats.

  6. अगर राज की बात बताऊँ तो जो लोग खुद को नास्तिक कहते नही थकते, वो भी अपने जन्मदिन के दिन मन्दिर जाते हैं!!,यदि वे शादी-शुदा हैं तो अपनी पत्नी की खुशी के बहाने से और अगर शादी-शुदा नही हैं तो अपनी माँ की खुशी के बहाने से!!

    खूब, तो हमें भी बक्शा नहीं आपने!! 😉 😛 अरे भई, एक दिन मंदिर हो आने से कोई आस्तिक नहीं हो जाता, मंदिर जाने वाला आवश्यक नहीं कि भक्त हो। वह एक जज़्बा होता है जो दिल में होता है, यदि आप नहीं मानते तो नहीं मानते, मंदिर आने जाने से उसका कोई संबन्ध नहीं। और दूसरी बात, सारा साल तो मम्मी की बात मान मंदिर जाते नहीं, एक दिन उनका दिल रखने के लिए चले गए तो क्या फ़र्क पड़ता है!! 😉 वैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे आदि कहीं भी जाने से मुझे कोई परहेज़ नहीं है, सिवाय इसके कि जाऊँ तो अपनी इच्छा से जाऊँ और जाने का अर्थ यह नहीं कि उनमें विश्वास करने लगा। थोड़ी सी शराब पी लेने से कोई शराबी नहीं बन जाता!! 😉

  7. @ मनीष जी, बहुत धन्यवाद, ‘गलतियाँ’ सुधार ली हैं.

    @ शुएब भाई,,//लगता है भगवान मे इनसानियत आगई है// हाँ ऐसा ही कुछ लगता है!!

    @ रत्ना जी, बहुत धन्यवाद..

    @ अमित, आप अकेले की बात नही की थी हमने..आपकी बात हम समझ सकते हैं!!

  8. रचना जी आप जैसे आस्तिकों को अगर भगवान का कोई जवाब मिले तो जरूर बताइएगा। शायद हमारी आँखें खुलें।

  9. bahut khoobsoortee ke saath likha vyangya, vastav me mazaa aaya.
    jin dino ye chamatkaar hue, maine bhi kai baar socha ki kuch likhoon, par kuch to waqt na mil paane ke kaaran aur kuch (ye kuch thora jyada hai) aalas ke karan man ki baat keboard par nahi aa paye.
    par aaj yunhi hindi blogs surf karte hue ye blog paRha to laga shayad mere vichaaron ko shabd mil gaye.
    really nice one.

  10. Why visitors still make use of to read news papers when in this technological world everything is presented on web?


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