‘भारतीय रेल’

एक घंटा देर से, वो समय पर कहलाती है,
लाखों लोगों को रोज यात्रा करवाती है.
कभी-कभी सिगनल को देख नही पाती है,
और रास्ते मे खडी माल गाडी से टकराती है.
कभी-कभी नदियों के पुल से लटक जाती है,
कभी इसके डब्बों मे आग लगाई जाती है.

हे भगवान!! ये भारतीय रेल है,
या लोहे के पहियों पर मौत का खेल है???

Published in: on दिसम्बर 3, 2006 at 3:57 अपराह्न  Comments (6)  

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6 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. हे भगवान!! ये भारतीय रेल है,
    या लोहे के पहियों पर मौत का खेल है???

    बेहद प्रासंगिक प्रश्न उठाया है आपने ! भागलपुर में रेलवे इंजीनियर की कोताही से इतनी जानें गईं उसका मूल्य क्या १ लाख रु. देने से चुका पाएगी सरकार ?

  2. ब्लाग का नवीनीकरण बढ़िया लग रहा है।

  3. नहीं जी – मेरे ख़याल से वो पुराना वाला थीम सही था क्योंकि पन्ना ज्लदी डाऊनलोड होता है। वैसे ये थीम भी अच्छा तो है

  4. और हाँ उपरोक्त टैगलाइन ‘Just another WordPress.com weblog’ (बैनर के पास) की जगह कोई सुंदर सी पंक्ति लिख दीजिए।

  5. @ मनीष जी, ठीक ही कहा आपने, लेकिन बस इसी तरह चहता रहता है…..

    @ रत्ना जी, बहुत धन्यवाद.

    @ शुएब भाई, अभी सब प्रयोग के तौर पर चल रहा है..

    @ श्रीश जी, हाँ जरूर लिखती हूँ कोई अच्छी सी पन्क्ति, जल्दी ही!

  6. बिहार जाने तमाम तरेन मे हर 8 बथ पे 2 चार्ज पलक लगाऐँ और मुमबई से बिहार के लिऐ गरिब रथ होना चाहिऐ


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