मेरी पाँच बातें

पिछले दिनों अमित को उनके मित्र ने ‘टेग’ करके उनके कुछ राज बताने के लिये कहा, उन्हें अपने स्कूल की बातें याद आ गई और फिर टेग के नियम के अनुसार उन्होंने कुछ और चिट्ठाकारों को ये काम करने के लिये कहा.हमें भी कहा गया. अब राज तो कुछ हैं नहीं, यूँ ही अपने अन्दर झाँक कर देखा तो कुछ बातें मिल गईं–

१. सबसे पहले तो बात उसी की कर लें, जिसके द्वारा आप मुझे जानते हैं यानि मेरे लेखन की. दरअसल पिछले कुछ सालों मे मेरा लिखना मेरे लिये भी एक खोज ही है! जिन्दगी में कई बातें अजीब से इत्तफाक से हो जाती हैं वैसे ही मेरा लिखना शुरु हुआ. एक बार मेरी छोटी बेटी को स्कूल के किसी समारोह में दुल्हन बनाया था. तैयारी तो सारी कर ली गई और मेरा ये मानना था कि भारतीय दुल्हन चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छी लगती है, लेकिन मेरी मित्र की जिद थी कि उससे कुछ बुलवाया जाय. उसने कई सारी फिल्मी पन्क्तियाँ सुझाई लेकिन मुझे इतनी छोटी बच्ची से वो सब बुलवाना ठीक नही लगा. थोडा सा सोचा तो ये पन्क्तियाँ बन गईं-

मै नई सदी की दुल्हन
नहीं रही मैं ऐसी वैसी
नहीं परीक्षा सीता जैसी
अब ना मुझको कोई बन्धन
मै नई–

कम्प्यूटर है मुझको आता
फास्टफूड है मुझको भाता
उडती हूँ मैं पवन पवन
मै नई–

और फिर मैं लिखती ही चली गई..कई कविताएँ लिख लीं.ज्यादातर बिना किसी मेहनत के एक ही बार में लिखी है और लिखने के बाद बहुत ही कम बार ऐसा होता है कि मैं उसमे कुछ फेर बदल करती हूँ..

लेकिन मेरे भाई बहन, जिनके साथ मैं पली बढी और जिस तरह की बचपन से मेरी रुचियाँ रहीं, वो मानने को तैयार ही नही थे कि मै लिख भी सकती हूँ!! बहुत परीक्षाएँ लीं उन्होंने मेरी और तभी जा कर वे माने की ये सब मैंने ही लिखा है और मुझे अपने घर में किसी की कोई पुरानी डायरी नही मिली है!!

२. लिखने के बाद बात पढने की आती है..पढती तो मैं बहुत हूँ लेकिन कहानी या उपन्यास पढने में ज्यादा रुचि नहीं रही…. बहुत ही कम पुस्तकें पढी हैं वे भी ज्यादातर आत्मकथाएँ..बडा सा उपन्यास पढने का बिल्कुल भी धर्य नहीं है.. लेकिन लिखती हूँ तो कई बार यह स्वाभाविक प्रश्न मुझसे पूछा जाता है कि मेरे पसँदीदा साहित्यकार कौन हैं और मेरे लिये ये दुनिया का सबसे कठिन प्रश्न साबित होता है!!

३. जब मै चिट्ठाजगत से परिचित हुई तब मुझसे कहा गया था कि आमतौर पर यहाँ भी ग्रुप्स होते हैं..लेकिन मेरी प्रतिक्रिया थी कि आम जिन्दगी में तो हम तमाम भागों में जाति, स्टेटस, सम्पन्नता आदि के आधार पर बँटे हुए हैं ही कम से कम इस जगह तो ऐसा कुछ न हो! मुझे कभी भी किसी ग्रुप मे शामिल होना पसन्द नही रहा या कहें कि मै हर ग्रुप मे शामिल होना चाहती हूँ…..मेरी बहुत अच्छी मित्रों मे एक की उम्र ७५ वर्ष है और एक की १७ वर्ष!

मै किसी तरह कि ‘ब्लाईंड फेथ’ पर यकीन नही करती, बल्कि मैं आँखें खुली रख कर आस्था रखने पर विश्वास करती हूँ…किसी तरह के निर्णयों पर पहुँच कर अडियल हो जाने के बजाए मै विचारशील रहना पसँद करती हूँ.. क्यों कि कोई भी निर्णय अपने आप में सही या गलत नही होते बल्कि परिस्थितिनुसार होते हैं…

 

४. मुझे दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कोई भी ‘के’…’एक्स’, ‘वाय’,’ज़ेड’! धारावाहिक पसँद नही हैं. उसमें भारतीय औरतें करोडों के बिसनेज़ करने वाली कम्पनीयों की सी.ई.ओ. होने के साथ ही अपहरण, हत्या और न जाने किन किन कामों में माहिर होती हैं! और पुरुष! मानों उन्हें तो इन महिलाओं के झमेलों मे उलझने और बाहर आने के सिवा दूसरा कोई काम ही नही आता है!

मुझे ‘क्विज’ वाले प्रोग्राम पसँद है, टेनिस, क्रिकेट देखना पसँद है. और हाँ अपनी मेरी बेटी के साथ “मैड” और “ओसवाल्ड” देखना भी पसँद है!

मुझे ‘सुडोकू’ और ‘शब्द या वर्ग पहेली’ हल करना बहुत पसँद है! रोज कम से कम एक करती हूँ!

पिछ्ले २० सालों मे मैने शायद ३० हिन्दी फिल्म देखी होंगी! ओह इसका मतलब ये नही कि मै अन्ग्रेजी फिल्म देखती हूँ!! वो तो मुझे समझ ही नही आती!!!

 

५. मै अपनी गलती जल्दी से मान लेती हूँ (अगर मैने की हो तो!!), लेकिन मेरी बेटी ऐसा नही मानती!!

—–

अब मै इस टैग को थोडा बदल कर आगे बढाना चाहती हूँ. ये मेरे पाँच सवाल हैं–

१. आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?

२. यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?

३.क्या आप यह मानते हैं कि चिट्ठाकारी करने से व्यक्तित्व में किसी तरह का कोई बदलाव आता है?

४.आपकी अपने चिट्ठे की सबसे पसँदीदा पोस्ट और किसी साथी की लिखी हुई पसँदीदा पोस्ट कौन सी है?

५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.

ये प्रश्न इनके लिये हैं–

 

१.समीर जी. २.अनूप जी. ३.मनीष जी. ४.उन्मुक्त जी. ५.जीतू भाई.

 

(*मुझे खुशी होगी यदि आप लोग इसके जवाब देंगे*)

** जानती हूँ, आप सभी वरिष्ठ और सम्मानित चिट्ठाकार हैं, शायद आपके अपने चिट्ठों के लिये कोई मानक भी निर्धारित होंगे..यदि आप अपने चिटठे पर न लिखना चाहें तो कोई बात नही*

——–

Published in: on फ़रवरी 16, 2007 at 10:03 अपराह्न  Comments (30)  

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30 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. आपकी आत्मस्वीकारोक्ति पसंद आई…सही कहा कोई ग्रुप नहीं होना चाहिए पर क्या ऐसा है…? मेरा अभी इस दुनियाँ में आये कुछ एक दो महीने ही हुए हैं पर यह देखा है की कुछ लोग विशेष लोगों तक ही जाते हैं तो ऐसे में और क्या सोंचा जा सकता है…कई लोगों को कविताएँ नहीं भाती काइयों को गद्य और Tecnical तो यह भी एक कारण है…।

  2. ग्रुप? भई हमें भी तो बताओ कि कितने ग्रुप सक्रिय हैं?

    हमें तो अब तक पता ही नहीं चला कि हिन्दी चिट्ठाकारों के बीच कुछ ग्रुप भी फल फूल रहे हैं…

  3. सही है,
    आपको मौका मिला था तो कुछ निजी पोल पट्टी खुलवाते इन सब की। आपने तो बड़े औपचारिक से प्रश्न पूछे।

    वैसे मुझे भी इंतजार रहेगा इन सबके जवाबों का 🙂

  4. आपके बारे में भी कुछ और पता चला, लेकिन अभी भी प्वाइंट नंबर ५ साफ नही हुआ आखिर कौन सही है ?

  5. @ रवि भाई, मैने नही कहा कि मैने ऐसे ग्रुप्स देखे हैं!! और इस बात को मैने समय समय पर कहा भी है, कल ही परिचर्चा मे भी कहा! काफी पहले अतुल जी की चर्चा पर भी टिप्पणी करके कहा था! लेकिन मुझे जिन्होने चिट्ठा शुरु करने को कहा था, उन्होने बताया था और तब ये अन्ग्रेजी के चिट्ठों के बारे कहा गया था. हिन्दी मे ऐसा कोई पूर्वाग्रह नही था और मेरे जैसी चिट्ठाकार का यहाँ ६ महीने से बने रहना इस बात को साबित भी करता है क्यों कि न तो मुझे ‘टेक्निकल’ बातें आती हैं न ही साहित्यिक!!एक बात और टिप्पणी “दो और लो” का फंडा भी मुझे समझ नही आता जिसका बहुत प्रचार दिखाई देता है.

    @ जगदीश भाई, डरते- डरते तो औपचारिक बाते पूछ पाई हूँ!!

    @ तरुण, पाॉइन्ट ५. मे हम दोनो सही हैं!

  6. @ दिव्याभ, शुक्रिया.मुझे यहाँ एक साल हो गया है, और मैने भी नही देखा कि ऐसा है, लेकिन जब मै इस दुनिया से परिचित हुई तब मुझे ये कहा गया था..और समान रुचियों वालों का एक दूसरे को पढना बहुत ही स्वाभाविक है.

  7. अच्छी तरह व्यक्त किया आपने खुद को।

    जब मै चिट्ठाजगत से परिचित हुई तब मुझसे कहा गया था कि आमतौर पर यहाँ भी ग्रुप्स होते हैं..लेकिन मेरी प्रतिक्रिया थी कि आम जिन्दगी में तो हम तमाम भागों में जाति, स्टेटस, सम्पन्नता आदि के आधार पर बँटे हुए हैं ही कम से कम इस जगह तो ऐसा कुछ न हो! मुझे कभी भी किसी ग्रुप मे शामिल होना पसन्द नही रहा या कहें कि मै हर ग्रुप मे शामिल होना चाहती हूँ

    ग्रुप की जहाँ तक बात है तो यहाँ तो केवल कवियों के ही कुछ ग्रुप हिन्द-युग्म आदि हैं अन्य कोई ग्रुप हों तो बताइए। वैसे जब एक जगह कुछ इन्सान इकट्ठा होंगे तो रुचियों के आधार पर उनका परस्पर संपर्क तो बढ़ेगा ही लेकिन फिर भी ‘ग्रुप’ का जिस अर्थ में आप प्रयोग कर रही हैं ऐसा तो मुझे कुछ मालूम नहीं।

    वैसे मेरा भी कोई ग्रुप है क्या ?

  8. मैं लगभग दो वर्षो से चिट्ठाकारी कर रहा हूँ, मगर गुट? ना जी…अभी तक नहीं बने है.
    मतभेद उभरते रहे है, चर्चाएँ होती रही है. मगर गुटबाजी जैसा कुछ नहीं.
    हाँ कवियों को कवि दिल दाद देते है, दुसरे भी अपनी रूचि का पढ़न पसन्द करते है, यह बुरा भी नहीं है.

    आपने टैग तो सही लोगो को किया है, मगर सस्ते में छोड़ दिया. 🙂

  9. आपके बारे मे जानकर बहुत ख़ुशी हुई, आप ने जिन साथियों को टैग किया है शायद पंकज बैंगाणी भाई का नाम छूट गया होगा ? 😉

  10. रचना जी ,अच्छा लगा आपके बारे में इतना सब जानकर । धन्यवाद । सबकी टिप्पणियाँ भी अच्छी लगीं । ग्रुप्स के बारे में तो नहीं जानती किन्तु इतना जानती हूँ कि जिन जिन को कई बार पढ़ा है, यहाँ या परिचर्चा में , या जिनके साथ कुछ बातचीत उत्तरों या टिप्पणियों के माध्यम से हो गई , जब जब उनका नाम देखती हूँ तो लगता है ये मेरे अपने हैं, मेरे मित्र हैं और यह अनुभूति बहुत अच्छी लगती है । मैं सदा यह कहती थी कि नेट मेरे लिए विश्व की खिड़की है , किन्तु सौभाग्य की बात है कि इस खिड़की से अब मैं झांक कर उनके जीवन, विचारों को भी देख सकती हूँ और उनसे बात भी कर सकती हूँ ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com

  11. सबसे पहली बात तो यह कि रचनाजी ने हमें कुछ बताने लायक समझा और सवाल पूछे। हम इसके लिये रचनाजी के आभारी हैं।

    जल्द ही हम उनके सवालों के जवाब देंगे। जो साथी इन सवालों के औपचारिक हो जाने से दुबले हैं उनसे अनुरोध है कि वे हमसे अनौपचारिक सवाल भी पूछं लें। बहुत दिन से पूछिये फुरसतिया से के अंदाज में सवाल-जवाब नहीं हुये।:)

    जहां तक रचनाजी के ब्लागिंग में ‘ग्रुप’होने की बात है तो उन्होंने साफ कर ही दिया कि यह उनकी नहीं उनके मित्र की धारणा थी। रचनाजी हिंदी ब्लाग लिखने के पहलेअंग्रेजी ब्लाग लिखती थीं और जैसा प्रवाह उनकी अंग्रेजी कविताऒं में अभी हिंदी कविताऒं में वैसा प्रवाह लाने के लिये शायद कुछ मेहनत भी लगे।उनके जिन मित्र ने बताया होगा उनकी अंग्रेजी ब्लाग्स के बारे में यह धारणा होगी और सही ही होगी। मैंने बहुत दिन से अंग्रेजी ब्लाग्स देखे नहीं लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि वहां जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा है और ‘ग्रुपिज्म’ भी। लोग एक-दूसरे की खूब खिंचाई करते हैं। बुराई भी। दो साल पहले इंडीब्लागीस में कुछ लोगों ने अपना प्रचार करते हुये अपने ब्लाग की अच्छाई से ज्यादा ध्यान दूसरे ब्लागों की बुराई बताने पर दिया था। अभी हिंदी ब्लागों में ज्यादा सहजता है अभी। ज्यादा खुलापन है-घात-प्रतिघात नहीं है। तो यह सब अभी अंग्रेजी ब्लाग में है हिंदी ब्लागजगत अभी तक इन बुराइयों कमोवेश अछूता है। आगे की बात समय बतायेगा।

    यह कमेंट काफ़ी लम्बा हो गया पता नहीं रचनाजी कहीं बुरा न मान जायें क्योंकि वे एक बार कह चुकी हैं कि वे किसी भी बात को मजाक समझकर बुरा मान सकती हैं। वैसे बुरा मानने वाली कुछ बातें हमने भी नोट कीं वे हैं:-

    १.ये बातें डरते-डरते पूंछीं- क्या हम लोग इतने डरावने हैं?
    २. यह कैसे मान लिया गया कि हमारे चिट्ठों के कुछ मानक ऐसे होंगे जिनके कारण हम इन सवालों के जवाब अपने ब्लाग पर न देना चाहेंगे।

    बहरहाल, और कुछ ज्यादा न कहते हुये हम यही कहना चाहते हैं कि आपकी यह पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा! बधाई!!

  12. यह पोस्ट पढ़ कर कुछ असमंजस, कुछ उलझन में पड़ गया। कुछ सवालों के जवाब मुश्किल हैं मुन्ने की मां चिट्टा लिखती कम है पर पढ़ती जरूर है। यदि मैंने सच में किसी का नाम ले लिया तो घर में खाना नसीब नहीं होगा। नासिक तो बहुत दूर है वहां से न आ पायेगा। फिर भी कोशिश करके, अपने चिट्ठे पर जवाब देने का प्रयत्न करूंगा।
    देखिये ग्रुपिस्म के बारे में आपको कहने का कोई अधिकार नहीं है। यह तो आपे स्वयं कर रही हैं दूसरे को दोष देना ठीक नहीं। हम पहले चार तो ‘जी’ हो गये और पांचवें को ‘भाई’ बना लिया। अरे हममे कोई कमी थी या फिर इतने गये गुजरे हैं जो भाई लायक नहीं समझा। 🙂
    लेकिन आप तो छिपी रुस्तम निकली। मुझे नहीं मालुम था कि अंग्रेजी में भी इतना अच्छा चिट्ठा लिखती हैं। एक पोस्ट में इन सवालों के जवाब भी हैं। सोचता हूं कि वहीं से कॉपी कर लूं। आपके चिट्टे पर कई टिप्पणियां भी हैं। काफी लोग पढ़ते हैं। मैं भी सोचता हूं कि अंग्रेजी में चिट्ठा लिखूं।

  13. शुक्रिया टैग में शामिल करने के लिए । फिलहाल वक्त की तंगी है। फुर्सत मिलते ही आपकी पूछी हुई बातों का जवाब देने की कोशिश करूँगा ।

  14. अब तो तुमने फंसा ही दिया है, अब तो लिखना ही पड़ेगा।

    जल्द ही लिखेंगे, आखिर हमे भी तो पाँच और लोगों को फाँसना है।

  15. @ श्रीश और सन्जय भाई, ग्रुप के बारे मे उपर रवि भाई को जवाब देकर स्पष्ट किया है मैने..हम सब का एक ही ग्रुप है!

    @ शुएब भाई, शुक्रिया.किसी का नाम नही छूटा है!! आपके लिये, पन्कज के लिये और भी कई लोगों केघु लिये दूसरे प्रश्न होंगे किसी दिन!

    @ घुघूति जी, आप मुझे रचना ही कहें! और मै यही कहना चाह रही थी कि यहाँ एक अपनापन सा है सबके बीच और ग्रुप नही हैं लेकिन ठीक से कह नही पाई. जैसा कि आपने कहा यहाँ एक संवाद है, वो ही मुझे भी सबसे ज्यादा पसँद है चिट्ठों की दुनिया मे!

    @ अनूप जी, टिप्पणी के लिये, मेरी बात को स्पष्ट कर देने के लिये और मेरे ‘अन्ग्रेजी ब्लाग’ के बारे मे बताने के लिये धन्यवाद!!
    *जैसा प्रवाह उनकी अंग्रेजी कविताऒं में अभी हिंदी कविताऒं में वैसा प्रवाह लाने के लिये शायद कुछ मेहनत भी लगे*
    अगर ऐसा है तो मेरे लिये शर्म की बात है, क्यों कि मै तो हिन्दी माध्यम मे ही पढी हूँ! अन्ग्रेजी तो बस यूँ ही अखबारों, किताबों आदि से सीख ली है!

    *वैसे बुरा मानने वाली कुछ बातें हमने भी नोट कीं *

    आपने पहले क्यों नही बताया था कि आप बुरा मानते हैं? हमे पता होता तो हम होशियार रहते!

    @ उन्मुक्त जी, जिनका भी नाम लें, उनसे मिलने दीदी (मुन्ने की माँ) को भी ले जाइयेगा, फिर कोई उलझन नही रहेगी! नासिक दूर है या पास ये तो आप जानें!

    ‘परिचर्चा’पर कुछ बातें रहीं तब से वे जीतू भाई हो गए और जीतू मेरे अपने भाई का नाम भी है तो मुझे उन्हे इसी तरह सम्बोधित करना पसँद है.

    शुरुवात अन्ग्रेजी से ही की और बहुत अच्छे मित्र मिले वहाँ भी लेकिन दो- दो जगह नही लिख पाती शायद किसी दिन फिर से वहाँ लिखूँ.

    जवाब वहाँ से काॉपी किये हुए नही चलेंगे! No cheating!!

    @ मनीष जी, जब फुर्सत मिले तब लिखियेगा.

    @ जीतू भाई, जब चाहें तब लिखें, मुझे पढने का इन्तजार रहेगा!

  16. यह भी सही रहा. जैसे ही लपेटने की बात आई, सबसे पहले हम ही नजर आये. आपने सोचा आपने लपेटा है, हमने सोचा कि हमें सम्मान मिला है कि इस लायक समझे गये. सचमुच आभार. डरने की तो कोई बात नहीं, वैसे हैं नहीं जैसी फोटो आ गई है चिट्ठे पर और न ही किसी मानक के तहत अपना चिट्ठा लिखा जाता है. वहाँ तो हम वो सब भी लिखते हैं जो आज तक कागज कलम तक पर नहीं लिखा.

    अब ग्रुप पर तो सभी स्वजन अपना मत रख चुके हैं, इसका तो मुझे भी आज तक कोई अहसास नहीं हुआ. शायद आपके मित्र नें अंग्रेजी चिट्ठों के अनुभव के आधार पर बता दिया होगा. यही बात लगती है 🙂

    आदेशानुसार जल्दी आपके जबाब लेकर हाजिर होते हैं. ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा. जितने लोग सोच रहे हैं कि हमें सस्ते में छोड़ दिया गया है, उनके नाम नोट हो गये हैं. अब कम से कम वो तो सस्ते में नहीं ही छूटेंगे, यह तय रहा. 🙂

  17. rachna ji कुछ कम्मेंट करने को बचा नहीं है .. पहली बार आई हूं.. और इतने सवाल ज्वाब हो चुके हैन कुछ कहने को है नही. .. पर मुझे पढ्ना बहुत अच्छा लगा.. आपके बारे में तो जाना ही.. comments और उनके reply पढ्कर बहुत आनंद आया .. सच्मुच यहां संवाद करना बहुत प्रिय है मुझे भी…

  18. रचना जी,
    आपने बहुत उम्दा लोगों को नामित (टैग) कर दिया, हमें कुछ और मज़ेदार और सार्थक मिलेगा पढ़ने को। यहाँ तक तो बिल्कुल ठीक था, परंतु तब जब उन्मुक्त जी ने प्रत्युत्तर के साथ ही मुझको चिन्हित करा तब मुझे लगा, कि यह क्या हो गया!
    मेरी दुविधा यह है कि जब मैं उत्तर दूँ तो मैं किसको नामित करूँ? आप ने तो चुनिन्दा लोगों को पहले ही लपेट दिया। खैर कोई बात नहीँ, अभी तो बहुत योद्धा हैं मैदान में।

    और हाँ, अमित जी की कड़ी को ठीक कर दें। उसमें “http://” की पुनरावृत्ति होने से वह समुचित रूप से कार्य नहीँ कर रहे है।

  19. @ समीर जी, आप जल्दी से लिखिये हमे इन्तजार आपके जवाबों का और आपकी “नोटेड लिस्ट” के लोगों के जवाबों का भी!

    @ मान्या, धन्यवाद. आशा है आगे भी आती रहोगी यहाँ!

    @ राजीव जी, धन्यवाद अभी लिन्क ठीक कर ली है..और उन्मुक्त जी के माध्यम से हमे भी आपके बारे मे जानने को मिलेगा. आपने कई बातें पूछी हैं उन्मुक्त जी के चिट्ठे पर तो मेरे ख्याल से इस खेल मे ऐसा कुछ बन्धन नही है, आपको जैसी इच्छा हो वैसा लिखें, अपने चिट्ठे पर या उन्मुक्त जी के चिट्ठे पर टिप्पणी के रूप मे, लेकिन वहाँ बहुत संक्षिप्त लिखा जा सकेगा.

  20. वाह जी वाह, बड़ी सफ़ाई से आप टैग को पूरा भी कर गई और बच भी निकलीं!! 😉 😛

    वैसे आपने ग्रुप पर एक अच्छा मसला उठाया, अब इस पर तो सोच रहा हूँ कि अपने ब्लॉग पर ही लिखूँ(इतनी मुश्किल से तो मसाला मिला है लिखने को)। चलो देखते हैं, जैसे ही समय मिलता है लिखते हैं इस पर अपने विचार!! 🙂

  21. […] ने हमसे कुछ सवाल पूछे थे। हालांकि उन्होंने जैसे लिखा था आप […]

  22. @ अमित, सबसे पहले तो मै आपको धन्यवाद देना चाह्ती हूँ, जो आपने मुझे नामित करके अपने बारे मे कुछ बातें ऐसी कहने को कहा जो अन्यथा शायद मै नही कहती! और आपने जो ग्रुपिज़्म की बात का जिक्र किया है तो मै उसे रवि भाई को और अन्य लोगों को लिखे जवाब मे स्पष्ट कर चुकी हूँ..नही जानती कि अब और किस तरह से कौनसे शब्दों मे अपनी बात कहूँ..इस बारे मे उन्मुक्त जी ने बहुत ही अच्छे ढंग से अपनी पोस्ट मे लिखा है, हो सके तो आप कुछ लिखने से पहले उसे पढ लें.ये भी स्पष्ट कर देना उचित ही होगा कि मैने अन्ग्रेजी मे भी लिखा है और वहाँ भी सौभाग्य से मुझे ऐसा कुछ देखने को नही मिला..इतना ही निवेदन करना चह्ती हूँ कि मेरे मित्र की बात को अच्छे अर्थों मे ही लिया जाए.

  23. अच्‍छा खेल है। कम से कम दर्शकों के लिए तो अच्‍छा ही है। उत्‍तर देने वालों की वे खुद जानें।

  24. […] रचना ने जब लिखने के लिए फँसा ही दिया है, तो हम भी लिख ही डाले, कंही ऐसा ना हो कि […]

  25. @ मसिजीवी, आपको खेल पसँद आया, ये जाहिर करने का शुक्रिया. अगर आप चाहें तो ये खेल उत्तर देने वालों को कैसा लगा ये भी जान सकते हैं, उनके उत्तर पढकर !

  26. […] आईने का ठीक नहीं 25 02 2007 रचना जी ने जब पांच सवाल पूछे तो मैंने चुटकी ली थी कि “आपको मौका मिला था तो कुछ निजी […]

  27. […] – पांच सवाल का जवाब दो। मैं तो दो बार यहां और यहां पकड़ा गया। जवाब तो देना पड़ा […]

  28. […] जी ने जब पांच सवाल पूछे तो मैंने चुटकी ली थी कि “आपको मौका मिला था तो कुछ निजी […]

  29. […] जी ने जब पांच सवाल पूछे तो मैंने चुटकी ली थी कि “आपको मौका मिला था तो कुछ निजी […]

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