चंचल मन….

नमस्कार!!

पहचाना मुझे? भूल तो नही गये ना? 🙂

मै वही पुरानी, जो कभी कविताएं और कभी लेख लिख देती थी,
जो मेरे मन मे आये वो बातें क्ररती थी….
आज फ़िर हाजिर हूं, अपने मन के साथ…

** आजकल दिलीप बहुत अच्छी कविताएं लिख रहे हैं.. उन्होने ’मन’ को कुछ सलाह दी तो मेरे मन ने भी कुछ कहा. 🙂

मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!
सांस के संग हमकदम हो,
वो अथक, अविराम चलता!

सपनों को ऊंचाई मिलती,
मन के घोडे दौडते जब,
दुख हटा, स्वच्छन्द मन से,
हम निराशा छोडते जब!!
यूं तो मन मे राम ही है,
पर कभी रावण आ बसता!
मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!

तर्क हों दिमाग के जब,
और हों मन की भावनाएं!
किसको छोडें, किसकी सुन लें,
ऐसी दुविधा मे फ़ंस जाएं!
आगे कर दिमाग को तब ,
मन बेचारा पीछे हटता!
मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!

काम अच्छे हम करें जो,
सब दिमाग के खाते जाएं,
और सब गलतियां हमारी,
भावुक मन के माथे आएं!
जिन्दगी के सुख मे, दुख मे,
केवल मन ही साथ रहता!
मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!

कोइ लगते बैरी हमको,
कोइ लगते हमको प्यारे!
प्यार के या बैर के हों,
मन के हैं सम्बन्ध सारे!
मन मे जैसा बस गया जो,
मन से फ़िर वो न निकलता!
मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!

जीत मिलती हमको मन से,
मन के हौंसले हैं न्यारे
हार हमसे दूर होगी!
जब तक मन से हम न हारे!
साथ चल, संघर्ष कर,
मुझसे मेरा मन ये कहता!
मन है चंचल, मन अधीर है,
वो कभी न है ठहरता!
सांस के संग हमकदम हो,
वो अथक, अविराम चलता!

रचना

Published in: on जून 12, 2010 at 5:18 अपराह्न  Comments (12)  

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12 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. Mn ke sagar ki gahraiyo se nikale hue amuly motiyo ki adbhut post……… Aman ka anand isse anant guna hota hai…

  2. “हार हमसे दूर होगी!
    जब तक मन से हम न हारे!”
    उत्तम…………..तुम्हारे मन को जीतना तुम्हे ही आता है ……..मुझे विश्वास है ……

  3. मन बेचारा कितना भी अच्छा करे गालियाँ ही खाता है… चञ्चल कहलाता है.. बढ़िया कविता…

  4. कोमल सुन्दर भाव की मनमोहक अभिव्यक्ति….

    सुन्दर रचना…सुखद लगा पढना…

    आभार..

  5. जिन्दगी के सुख मे, दुख मे,
    केवल मन ही साथ रहता!
    Wah! sabse pehale to janab …bahut khub lagi ye blog aapki 🙂 naye rang ke sath nayee umange le aayeen hain aap ya phir aapka chanchal mann 🙂
    Bahut hee khubsurat ….margdarshak to kaheen haqiqat parast kavita lagi mujhe ye.
    Mann ke baare mein jitna bhi aapne kaha …mujhe mere mann ke kareeb hee laga…! Meri taraf se daad kabool karein aur zorr-e-kalam aur jyada 😉
    with love
    Dawn

  6. sahi kaha to is hisaab se man ke hi do roop ho gaye…kabhi raam to kabhi raavan…bas isi personality disorder ko khatm karna hai…khul ke aao….raam bano ya raavan….waise bahut hi sundar kavita….bahut achchalaga aapko padhkar…ummeed hai aage bhi rachna ji ki rachnaayein padhne ko milti rahengi…..aur bahut abhaar aapne mere prayaas ko is layak samjha….

  7. मन बहुत चंचल है .. मन पर अच्‍छी रचना !!

  8. मन के बारे में मन भर कर लिखा है…खोबसूरत रचना

  9. welcome back ji nice poem

  10. सुन्दर।

    काफ़ी समय बाद फ़िर से सक्रिय देखकर बहुत अच्छा लगा।

    मन के बारे में अच्छा लिखा। मन मजबूत रहे , चंचल हो तब भी कोई बात नहीं! 🙂
    लिखती रहें।

  11. आप सभी की टिप्पणियों के लिये बहुत बहुत शुक्रिया!

  12. man ki khaniya


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