अपनापन .. ( कहानी )

** जीवन मे कई रिश्ते बनते- बिगडते, उलझते सुलझते रहते हैं. पारिवारिक, कार्यक्षेत्र के, दोस्ती के, और मानवीय संवेदनाओं के. भारतीय समाज मे हर तरह के रिश्ते का अपना एक विशेष महत्व है. अब धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है.
यूं तो सबसे प्यारे खून के रिश्ते होते हैं, फ़िर भी जीवन मे कुछ रिश्ते, दिल से दिल के बन जाते हैं .. ऐसे ही एक रिश्ते की कहानी  है-  अपनापन

फ़ातिमा चाची और आरती दीदी दोनो,  दीप अपार्टमेंट की पहली मन्जिल पर आमने सामने के घरों मे रह्ते थे .आरती दीदी एक स्कूल मे शिक्षिका थी और अपने दो बच्चों के साथ रहती थी. फ़ातिमा चाची एक अधेड़ उम्र की महिला थी, उनकी शादी नही हुई थी, सो वो अकेले ही रहती थी ..एक बहन थी उनकी जो अपने परिवार के साथ कुछ दूर, दूसरी कॊलोनी मे रहती थी … एक भाई और उनका परिवार दूसरे शहर मे रहते थे…. जिस मकान मे वो रह्ती, वो उनके भाई का था .उनके जीवन का खर्च भी उनके भाई , बहन तथा उनका समाज  सम्मिलित रूप से उठाते थे. वो एक पढी लिखी महिला थी…  अकेले होते हुए भी वो जीवटता से भर पूर थी. उन्हे हर तरह का शौक था और उनके घर मे हर तरह का सामान था. अकेले होते हुए भी वो घर को खूब सजा कर रखती.
    बिल्डिंग वाले सारे परिवारों और उनके बच्चों से वे मिल जुल कर रहती … घर के छोटे -मोटे काम वे उनसे करवाती रहती. और हर कोई आते जाते उनके काम खुशी खुशी कर भी देता.. उन्हे तरह तरह के व्यन्जन बनाने का भी शौक था. आरती दीदी से उन्हे विशेष स्नेह था. जब कुछ नया काम करती तो आरती दीदी को जरूर दिखाती. कुछ नया व्यन्जन बनाती, आरती दीदी को जरूर खिलाती. आरती दीदी क्रोशिये की कढ़ाई करती या फ़िर अपनी बेटी के लिये ऊन का स्वेटर बुनती तो फ़ातिमा चाची भी झट उनके पास आकर कहती, आरती दीदी मुझे भी अपने लिये बनाना है, मुझे भी सिखाओ ना! उनकी बढ़ती उम्र की वजह से उन्हे जल्दी कोई बात समझ मे नही आती और वो कई सारी गलतियां करती रहती. कई बार आरती दीदी उन्हे समझाती, कई बार नाराज भी हो जाती और अक्सर अन्त मे हार कर उनका काम वो खुद पूरा करके देती .
           बढती उम्र की वजह से चाची की तबियत थोड़ी नासाज़ रहने लगी थी.. उनके लिये आरती दीदी दवाइयां लाकर देती, जो किसी समाज सेवी संस्था की मदद से सस्ते दामों पर मिल जाती .. एक बार चाची घर मे ही गिर गयी .. जैसे तैसे उठकर आयी आरती दीदी के पास… उनकी तकलीफ़ बढ़्ने पर आरती दीदी ने उनकी बहन को फ़ोन करके बुला लिया .. उन्हे  अस्पताल ले जाया गया.. पता चला की उनकी पैर की हड्डी टूटी है… प्लास्टर चढ़वा कर, एक दो दिन बहन ने अपने घर मे उन्हे रखा और फ़िर वापस उनके घर छोड़ गयी …. जैसे तैसे वो अपना काम कर पाती… ज्यादा तकलीफ़ होने पर आरती दीदी को बुलाती..उनकी चोट का दर्द तो अपनी जगह था, लेकिन उन्हे सबसे ज्यादा जरूरत, किसी के उनके पास होने की थी और आरती दीदी इस जरूरत को बखूबी पूरा करती… अक्सर चाची उनके रिश्तेदारों के मिलने का इन्तजार करती, लेकिन  कोइ मिलने नही आता तो उदास हो जाती … आरती दीदी उनसे कहती – कोइ नही आया तो क्या हुआ मै हूं ना आपके लिये!….चाची कहा करती कि आरती दीदी, तुम्हे अल्लाह ने मेरे लिये ही इस घर मे रहने भेजा है …..चाची को अपने भाई बहनो से भी ज्यादा आरती दीदी पर भरोसा था….
             ईद के दिन चाची सुबह बहुत जल्दी उठकर तैयार हो जाती, उन्हे लगता आरती दीदी कहीं स्कूल के लिये निकल ना जायें … जल्दी से ईद मिलने के लिये आरती दीदी के घर आती, उनके और उनके बच्चों के लिये सिवैंया लेकर आती …कह्ती आरती दीदी आप ही मेरी ईद के लिये गले मिल लो, पता नही मुझसे मिलने कोई आयेगा या नही …..
          यूं ही आपसी स्नेह से उनका जीवन चल रहा था कि एक दिन अचानक, जब आरती दीदी स्कूल जाने के लिये तैयार हो रही थी, तभी चाची उनके घर आई और कहने लगी आज मेरी तबीयत कु्छ ठीक नही लग रही.. रात ही से दिल मे कुछ घबराहट सी है., तुम थोड़ी देर मेरे पास रुक जाओ …. आरती दीदी कुछ देर रुकी , उन्हे दवाई दी फ़िर उन्हे उनके घर सुला दिया… आरती दीदी को लगा कि उनकी तबियत कहीं उनके स्कूल चले जाने के बाद ज्यादा न बिगड़ जाए, इसलिये उन्होने उनकी बहन को खबर कर दी और वे स्कूल चली गयीं………
..दोपहर जब वे  स्कूल से वापस घर लौटी तो उन्हे पता चला कि फ़ातिमा चाची की तबियत ज्यादा बिगड़ जाने से उनकी बहन उन्हे अपने साथ लेकर गयी है…… पता चला कि चाची को अस्पताल मे भर्ती कराया गया है …… आरती जी, अपनी व्यस्तता के चलते एक दो दिन उनकी खबर नही ले पाई.. फ़िर अगले दिन उन्हे रास्ते मे फ़ातिमा चाची की एक रिश्तेदार दिखी तो उन्होने उनसे चाची की तबियत के बारे मे पूछा……..रिश्तेदार की ये बात सुनकर वे स्तब्ध रह गयी कि, चाची का तो अस्पताल मे उसी दिन शाम  को इन्तकाल हो गया था…… उन्हे वहीं से दफ़नाने के लिये ले जाया गया था ….. आरती दीदी को बेहद अफ़सोस हुआ कि वे अन्त समय मे उनसे मिल नही पाई, जबकी चाची उन्हे जरूर याद कर रही होगी ……. चाची की बहन ने आरती दीदी और उनके अन्य पड़ोसियों को खबर करने की जरूरत नही समझी, जिनके साथ वे रहा करती थी ……. सभी पड़ोसियों को बेहद दुख हुआ.. लेकिन वे  करते भी क्या… उन्हे बताया जाय या नही ये चाची के रिश्तेदारों की अपनी मर्ज़ी थी, आखिर वे उनके खून के रिश्तेदार थे!
    चाची के दफ़न होने के साथ ही स्नेह का एक मीठा रिश्ता भी दफ़न हो गया …चाची के रिश्तेदारों के लिये के लिये चाची एक काम थी जो खतम हो गया …………
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Published in: on जून 3, 2012 at 6:49 अपराह्न  Comments (4)  

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4 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. Aese kayin rishte hote hain jo bas yun hi ban jaate hain, un ka na to koi bojh hota hai, na hi karz, wo to bas jeevan ko aasaan banaane ke liye ban jaate hain. aapkii is rachna se mujhe bhi ek aesa rishta yaad aa gayaa.. aur unko bhi mai didi hi kehtii thii..

    behad sundar likhii hai aapne.

  2. […] यहां –  मेरे मन की , मेरी कहानी अपनापन  अर्चना चावजी की आवाज़ मे सुन सकते […]

  3. Good


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