दादी

भारतीय संयुक्त परिवार व्यवस्था में ‘दादी’ एक महत्वपूर्ण सदस्य होती है. अपने दो-तीन बेटों में से दादी अक्सर गाँव वाले बेटे के पास रहा करती है. शहर में उसका ज्यादा मन नहीं लगता क्योंकि वहाँ उसके रोज जाने के लिये मन्दिर पास नहीं होता, उसकी सहेलियाँ नहीं होतीं और न ही बरसों से उसके साथ रह रहे उसके पास-पडोस के लोग होते हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उसके और उसके बेटे, नाती-पोतियों के बीच ‘लाईफ-स्टाइल’ की खाई आ जाती है. उनके बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं, लेकिन दादी का मन है कि मानता नहीं! तो ऐसी ही एक दादी थीं—-एक दिन दादी के बेटे का फोन आया, पोते की शादी के बारे में खबर थी—–

बेटे ने कहा फोन पर-

‘माँ! — की शादी की है पक्की,
लड़की (बहू) डाक्टर है, बाकी फेमिली भी है अच्छी.’

पोता बोला-
‘दादी! पच्चीस की है सगाई,
गुस्सा हो जाऊँगा, जो तुम नहीं आई.’
दादी तो बस फूली नहीं समाई
बेहद खुश थी कि घर मे डाक्टर बहू आई.
दादी के मन में लगे लड्डू फूटने
सोचने लगी, अब सारी गडबड़ियाँ होंगी दूर!
और दर्द विहीन होंगे घुटने!!

कुछ दिनों बाद लगन तिथि आई,
स्वास्थ्य कारणों से दादी जा नहीं पाई,
कई मेहमान थे, कई थीं मिठाई,
नहीं थी तो बस दादी की दुहाई.

दादी को शादी में न जा पाने का दर्द था,
लेकिन पोते की बहू से मिलना तो उसका फर्ज था!

दादी फोन पर पोते से बोली –

‘बेटा! एक दिन बहू को गाँव ले आना,
मँदिर में दर्शन है करवाना.
अपने घर के रीति-रिवाज जान लेगी,
अपनी कुलदेवी का ‘आशिर्वाद’ भी पा लेगी.’

पोता बोला-

‘बहू के लिए गाँव आना है ‘अनकम्फर्टेबल’,
तुम्हीं मिलने आ जाना, जब तुमको हो सुटेबल!
गाँव आना उसके लिये तो टाईम-वेस्ट है.

दादी झुँझलाई-

‘क्यों नहीं जानते ये? कि जडो़ से जुड़ना ‘बेस्ट’ है!!’

इसके बाद दादी ने उन्हें कभी नहीं न्योता,
समय बीतता गया, बहू को हुआ बेटा.
दादी का मानना था, उन्हें कभी तो गाँव की याद आएगी,
बहू को न भी सही, पोते को तो आएगी.

शरीर जर्जर हो गया, लेकिन मोह की नही बुझी प्यास,
परपोते से मिलने की अब भी शेष थी आस.
कई दिनों तक दादी, पोते की राह देखती रही,
मन ही मन परपोता देखने को तरसती रही.
दादी का व्यर्थ था ये सब मंतव्य,
पोता सिर्फ अधिकार जानता था, नहीं जानता था कर्तव्य!

आखिरी समय में दादी की आँखों में नमी थी,
उसकी आँखें दरवाजे पर ही थमी थी.
अंत मे बेचारी समझ गई,
शायद उसके दिये संस्कारों में ही कमी थी.

दादी अब हो चुकी थी निराश,
सारे मोह त्याग दिये, छोडी़ सारी आस.
दादी जान चुकी, अब शेष सिर्फ राम-नाम सत्य है!
और अच्छी तरह मान चुकी,
कि सिवा राम-नाम के,बाकी सब असत्य है!!

* अभी जब मैंने ये पोस्ट टाइप करनी खतम की तब मुझे याद आया कि १७ दिस. को मेरी दादी की पुण्यतिथि है..शायद वो भी मुझे कहीं दूसरी दुनिया में याद कर रही हैं… तो ये पोस्ट मेरी प्यारी दादी के लिये…..
 

Published in: on दिसम्बर 12, 2006 at 4:51 अपराह्न  Comments (15)  

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15 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. बहुत ख़ूब रचना जी। आपकी दादी मां को भी पता चल ही गया है कि उनकी पोती अपनी दादी को बहुत मिस कर रही है। मैं ने अपनी दादी को नही देखा और ना ही उनका कोई फोटो।

  2. मेरी दादी अब नहीं हैं . वे बेहद दबंग महिला थीं . जब तक वे जीवित रहीं पूरे ठसके से रहीं . वे पढी-लिखी महिला नहीं थीं पर पढाई के महत्व को भली-भांति जानती थीं . एक ग्रामीण परिवेश वाले परिवार को शहर के उच्च-शिक्षित परिवार में तब्दील करने में उनकी भूमिका असाधारण थी .

  3. @ शुएब भाई, मेरी बेटियों ने भी अपनी दादी को देखा नही है! और इस बात को लेकर वे मुझसे इर्ष्या करती हैं! मेरे लिये दादी के बिना बचपन की कल्पना असंभव ही है..

    @ प्रियंकर जी, आप तो जैसे मेरी ही दादी की बात कर रहे हैं!
    //एक ग्रामीण परिवेश वाले परिवार को शहर के उच्च-शिक्षित परिवार में तब्दील करने में उनकी भूमिका असाधारण थी .//
    ये बात मेरी दादी के लिये भी बिल्कुल सच है, फर्क सिर्फ इतना ही है कि वो ४ थी कक्षा तक पढी थी. पूरा अखबार पढना और खेल से लेकर राजनीतिक और समाजिक विषयों पर दुनिया भर की खबर रखना, उनका प्रिय शगल था!

  4. तमाम लोग हमें तब बहुत याद आते हैं जब हम उनको खो चुके होते हैं.
    यह विचार-पोस्ट भी कुछ ऐसी ही याद दिलाती है. पोते को कभी दादी बहुत याद आयेंगी जब वह अकेला होगा….
    रमानाथ अवस्थी जी की कविता है:-
    आज आप हैं हम लेकिन
    कल कहां होंगे,कह नहीं सकते
    जिंदगी ऐसी नहीं है जिसमें
    देर तक साथ बह नहीं सकते।
    यह पोस्ट पढ़कर यही लगा।

  5. आपकी कविताओं के पात्र हमेशा ही काफी सजीव होते हैं और हम सहज ही उन्हें अपने इर्द गिर्द की जिंदगी से जोड़ पाते हैं ।

  6. bhai aap jo bhi ho duniya ki sach ko samne laye , iske liye aapko maera salam

  7. बहुत शुक्रिया अनूप जी. मनीष जी और चन्दन जी.

  8. meri dadi abhi kuchh mahine pahle hi is duniya me nahi rahi…..main unhe bahut yaad karti hun aur thoda sa achha lagta hai ki humne unke jite ji unki puri sewa ki…..jitna kar sakte the

  9. मैने अपनी दादी को 5 साल की उम्र मे खो दिया । आज मै उन्हे बहुत miss कर रहा हूँ । काश मै उनसे सपनो मे भी मिल पाऊ । – Rajeev kumar tanti

  10. मैने अपनी दादी को 5 साल की उम्र मे खो दिया । आज मै उन्हे बहुत मिस कर रहा हूँ । काश मै उनसे सपनो मे भी मिल पाऊ । – राजीव कुमार तांती

  11. मैने अपनी दादी को पाँच साल की उम्र मे खो दिया । आज मै उन्हे बहुत मिस कर रहा हूँ । काश मै उनसे सपनो मे भी मिल पाऊ । – राजीव कुमार तांती

  12. मेरी दादी अब नहीं हैं . वे बेहद दबंग महिला थीं . जब तक वे जीवित रहीं पूरे ठसके से रहीं . वे पढी-लिखी महिला नहीं थीं पर पढाई के महत्व को भली-भांति जानती थीं . एक ग्रामीण परिवेश वाले परिवार को शहर के उच्च-शिक्षित परिवार में तब्दील करने में उनकी भूमिका असाधारण थी .

    • sir mujhe bhut dukh hua ki aapki dadi ab nhi rhi h .

      Pooja

  13. meri dadi duniya ki sabse achchi dadi hai . Dadi mujhe aapki bhut yaad aati or aapki khaniya to bhut yaad aati hai . I miss u so much dadi. I love u Dadi

    Pooja Gautam

  14. Dadi ne Rula diya….mai bhi aapni dadi ko akhri waqt mai nahi dekh paya tha…sabse ladla tha,,,oh


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