बेनामीयों के नाम…..

यहां और यहां से पता चला कि हिन्दी ब्लॊग जगत के नामी- गिरामी चिट्ठाकार इन दिनो बेनामीयों से हैरान परेशान हैं… उनके लिये मेरे पास ज्यादा तो कुछ कहने को है नही.. बस किसी की लिखी ये सुन्दर पन्क्तियां दोहराना चाहती हूं….

भला किसी का कर न सको तो बुरा किसी का मत करना,
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.

बन न सको भगवान अगर तुम, कम से कम इन्सान बनो,
नही कभी शैतान बनो तुम, नही कभी हैवान बनो.
सदाचार अपना न सको तो पापों मे पग ना धरना,
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
भला किसी का……

सत्य वचन ना बोल सको तो झूठ कभी भी मत बोलो,
मौन रहो तो भी अच्छा है, कम से कम विष मत घोलो.
बोल यदि पहले तुम तोलो फ़िर मुंह को खोला करना.
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
भला किसी का……

घर न किसी का बसा सको तो झोपडियां न ढहा देना,
मरहम पट्टी कर ना सको तो क्षार नमक न लगा देना.
दीपक बन कर जल ना सको तो अंधियारा भी मत करना,
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
भला किसी का……
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
कांटे बन कर मत रहना.


लेखक- अज्ञात

***
अगर आप इस गाने को सुनना चाहते हैं तो यहां सुन सकते हैं

Published in: on जुलाई 2, 2009 at 11:28 पूर्वाह्न  Comments (9)  

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9 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. सुंदर भावनायें

    सच्‍चे विचार

    अपनायें सभी

    संभव हो तो

    अवश्‍य बढ़ाये प्‍यार।

  2. सुन्दर कविता. बहुत सुन्दर भाव लिए.

    लेकिन अनामी ‘भाव’ का मतलब कुछ और ही निकालते हैं….:-)

  3. गीत सुना था। अच्छा लगा। बेनामी भाई लोग भी सुनें इसे तब है। 🙂

  4. लो इसका लेखक भी अनाम नहीं अज्ञात.. तो अज्ञात का गीत अनाम के नाम..;)

  5. ye geet bahut dino se mujhe bahut pasand hai 🙂

  6. बहुत सुन्दर सीख देता गीत!!

  7. हे बेनामी, आज तुम खुश तो बहुत हो रहे होगे क्यूंकि ‘जिधर भी तू देखे उधर तू ही तू है’
    चाहे गीत हों, लेख हो व्यंग हो हरतरफ मानसूनी बादल जैसे छाए हो।

  8. सभी की टिप्पणियों के लिये धन्यवाद.

  9. मैंने यह चिट्टी पहले देखी थी, कविता भी अच्छी, सुनी भी पर ठीक से समझ नहीं पाया था। आज पता लगा कि इसका दूसरा लिंक मुझसे संबन्ध रखता है।

    मुझे नामी गिरामी चिट्ठाकार की उपाधि देने और समीर जी के साथ रखने का शुक्रिया। मेरा कद बढ़ गया।

    मैं बेनामी से परेशान नहीं हूं पर आश्चर्यचकित, अभिभूत जरूर हूं। कौन है यह शख्स, क्या करता है, क्या फायदा हो रहा है इसे। बिना किसी कारण, बिना फायदे के यह, अपना बहुमूल्य, पैसा लगा रहा है। मैं अज्ञात में लिखता हूं इसलिये शायद भगवान ने मुझे ठीक सजा दी 🙂

    दिवाली आपको दीपक जी और निशी को शुभ एवं मंगलमय हो।


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