..वैसे तो आप मेरी आवाज कई दिनों पहले सुन चुके हैं. 🙂
इस बार सुनिये मेरी और मेरी दीदी के सम्मिलित स्वर मे एक पुराना गीत…….
सुख- दुख दोनो रहते जिसमे, जीवन है वो गांव,
कभी धूप, कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव.
उपर वाला पासा फ़ेंके, नीचे चलते दांव,
कभी धूप, कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव.
भले भी दिन आते जगत मे, बुरे भी दिन आते,
कडवे मीठे फ़ल करम के यहां सभी पाते,
कभी सीधे, कभी उलटे पडते, अजब समय के पांव,
कभी धूप, कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव.
सुख- दुख दोनो ……
क्या खुशियां, क्या गम, ये सब मिलते बारी बारी,
मालिक की मर्जी से चलती ये दुनिया सारी,
ध्यान से खेना जग नदियां मे बन्दे अपनी नाव,
कभी धूप, कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव.
सुख- दुख दोनो ……
कवि- प्रदीप.
बहुत बेहतरीन गीत के बोल और बेहतरीन गाया है!! बधाई.
सुन्दर। आपके मित्र को शुक्रिया हमारा भी।
अच्छा लगा, बढ़िया जुगलबन्दी है 🙂
बहुत सुन्दर !
badhiya
आप दोनों की पसन्द रूहानी है – आध्यात्मिक । यह् तथ्य प्रस्तुति से भी प्रकट हो रहा है । कवि प्रदीप अमर हैं ।
pata nahin kyun par ye song sun nahin pa raha hoon.
बहुत ही मिठ्ठी आवाज दोनो बहिनो की, ओर गीत भी बहुत सुंदर.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर गीत है।
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
आप सभी का धन्यवाद.